पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
23. बैरका बीज हँसी
धर्मराज युधिष्ठिर का यज्ञ पूर्ण हुआ। शिशुपाल के मारे जाने पर उसके साथी, समर्थक भाग गये थे और जिनके मन में विरोध था भी वे संकेत से भी उसे प्रकट करने का साहस नहीं कर सकते थे। उन्होंने सहयोग देने में अधिक अपने को उत्सुक दिखलाया। अब सम्राट का स्नेह प्राप्त करने में ही समझदारी थी। यज्ञ की पूर्णाहुति हुई सम्राट पद पर सपत्नीक युधिष्ठिर का अभिषेक हुआ। द्रौपदी साम्राज्ञी हुई तो श्रीकृष्णचन्द्र ने प्रथमोपहार अर्पित किया। इसके पश्चात सबने एक साथ अवभृथ स्नान किया। यज्ञीय भस्म को अंग में लगाकर अवभृथ तो उल्लास का स्नान है। वाद्यों की मंगल ध्वनि, सुललित संगीत और परस्पर एक दूसरे पर जल उछालना। महिलाओं ने पिचकारियां उठा लीं और जिनसे भी परिहास का सम्बन्ध था सबको आनन्द की उमंग से आप्लुत कर दिया। अवभृथ के पश्चात सम्राटने ऋषियों को, ब्राह्मणों को, सूत, मागध, वन्दी प्रभृति कला जीवियों को, शिल्पकारों और सेवकों को सादर वस्र, आभूषण, गौ, गज, अश्व, रथ, स्वर्ण, रत्नादि देकर सन्तुष्ट करके विदा किया। राजाओं को, उनके परिवार तथा सेवकों को सम्राट ने इतने उपहार दिये कि उनको स्वयं संकुचित होना पड़ता था। सब युधिष्ठिर की उदारता की, शील की, सम्पत्ति की प्रशंसा करते विदा हुए। सम्पूर्ण देश में एक ही चर्चा व्याप्त हो गयी – ‘श्रीकृष्ण के अनुग्रहभाजन पाण्डुपुत्रों का यह अभ्युदय उचित ही है।’ युधिष्ठिर ने आग्रह करके सम्बन्धियों को, सुहृदों को रोक लिया – ‘अभी तो यज्ञीय व्यस्तता में मुझे अवकाश ही नहीं मिला कि मैं आप सबसे भली प्रकार भी मिल सकूँ। मुझे अपना समझकर आप सब सेवा में ही व्यस्त रहे। अब मुझे भी तो आपके सामीप्य का, सेवा का सौभाग्य मिलना चाहिए।’ लोगों ने अपने परिवार तथा सेवकों का, सहायकों का अधिकांश भाग विदा कर दिया। श्रीकृष्णचन्द्र ने भी अपने पुत्रों को, भाइयों को, सेना को द्वारिका लौटा दिया किन्तु उनकी महारानियों को साम्राज्ञी ने रोक लिया। मुख्य-मुख्य सम्बन्धी, सुहृद सम्राट के आग्रह से रुके रहे। इस यज्ञ में सबसे अधिक असन्तोष को दबाकर दुर्योधन को काम करना पड़ा था। वह पाण्डवों की लोकप्रियता, शक्ति, सम्पत्ति से बचपन से ही ईर्ष्या करता था। पाण्डुपुत्रों को नष्ट कर देने के उसने कुटिल प्रयत्न कई किये थे और वही अब सम्राट हो गये थे। विडम्बना यह कि सम्राट के लिए आये उपहार स्वीकार करने का कार्य उसे ही करना पड़ा था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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