पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
79. बर्बरीक का सिर
मनुष्य के मन की अदभुत अवस्था है। कभी-कभी वह इतनी असंगत बातों में उलझ जाता है कि परिस्थिति से उसकी कोई संगति किसी प्रकार बैठाना सम्भव नहीं रह जाता। वहाँ कुरुक्षेत्र की युद्ध-भूमि में चारों ओर शव बिछे पड़े थे और सहस्त्रों नारियां क्रन्दन करती, दौड़ती, मूर्च्छित होकर बार-बार गिर रही थीं। ऐसे करुण एवं वीभत्स वातावरण में भी एक चर्चा प्रारम्भ हो गयी– ‘युद्ध में किसने सबसे अधिक पराक्रम प्रकट किया?’ चर्चा पहले सेवकों में ही प्रारम्भ हुई। जो सेवक शवों को उठाकर चिताओं पर चढ़ा रहे थे, उनमें ही चर्चा चलने लगी थी कि अधिक संहार किसने किया? युद्ध में विजय का श्रेय किसको है। ‘इसे भीमसेन की गदा लगी होगी।’ अब गदा किसी की भी लगी हो; किन्तु कोई शव गदाघात से कुचला, फटा पड़ा है तो शव उठानेवाले सेवक उसके संहार का श्रेय भीमसेन को ही देंगे। युद्ध में दूसरे भी गदा का उपयोग करते रहे हैं, यह बात जैसे किसी के ध्यान देने-योग्य ही नहीं रह गयी। ‘यह गाण्डीव धन्वा के बाण से विद्ध हुआ।’ जहाँ भी शरीर में बाण लगा हुआ ने मिले और यह लगे की बाण से मारा गया है, वहाँ मान लिया गया कि यह अर्जुन का पराक्रम है। युद्ध में बहुत अधिक गजसेना भीमसेन ने मारी थी, यह सत्य है; किन्तु दूसरों ने तथा अर्जुन ने भी गजदल पर हाथ ही न उठाया हो, ऐसी बात तो नहीं थी; किन्तु सेवकों को भला इधर ध्यान देने की क्या आवश्यकता। भीमसेन भी धनुर्धर थे और अच्छे धनुर्धर थे। उनके धनुष से कम बाण-वर्षा नहीं हुई; किन्तु किसी के शरीर में विद्ध बाण दिख जाये तभी उसको भीम ने मारा, यह माना जाये तो बहुत कम शव ही ऐसे मिलने वाले थे। दूसरों पर कम ध्यान गया। सेवकों में दो दल हो गये। एक दल विजय का श्रेय भीमसेन को दे रहा था और दूसरा अर्जुन को। वे शव उठाने, समेटने का काम तो कर ही रहे थे। पाण्डव-पक्ष के वीरों का शरीर चुपचाप उठाते थे; किन्तु कौरव-पक्ष के किसी का शव उठाते समय– ‘यह भीमसेन के सम्मुख पड़ गया था !’ अथवा ‘इसे भी साहस हो गया था सव्यसाची के सम्मुख जाने का।’ इस प्रकार की बातें सेवक बोल उठते थे। उच्च स्वर में ही अपने साथियों को सुनाते बोलने लगे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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