पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
66. हनुमान का आवेश
भीमसेन अकेले युद्ध में पडें तो उनका पौरुष अत्यधिक अदम्य हो उठा था। उन्होंने सारथि से रथ में रखें सब अस्त्र-शस्त्रों की जाँच कर लेने को कहा और यह सुनकर संतुष्ट हो गये की प्रचुर शस्त्र उनके समीप हैं। कौरवों की सेना उन्हें घेरने लगी थी और वह भी उसे नष्ट कर देने पर तुले थे। भीमसेन ने कहा- 'इस समय में देवताओं से एक ही कामना करता हुँ कि अर्जुन आ जायँ।' भीमसेन को एक ही चिन्ता थी- 'पता नहीं राजा युधिष्ठिर का क्या हुआ। वे वाणों से बहुत आहत हो गये थे। उन्हे अर्जुन देखने गये थे ओैर अभी तक लौटे नहीं। राजा का कोई अनिष्ट न हुआ हो।' भीम के सारथि विशोक ने हँस कर कहा- 'आपकी मनोकामना पुर्ण हो गयी। श्रीकृष्ण आपके पक्ष में हैं। अतःसुरों को आज कल आप सबकी प्रार्थना तत्काल सुन लेने का अच्छा अभ्यास हो गया है। आप अपने सव्यसाची अनुज के धनुष का भयंकर ज्याघोष सुन सकते हैं। वह देखिये ! उनके ध्वजदण्ड के साथ बैठा रहने वाला वानर ध्वजा पर चढ़कर चारों ओर देख रहा है। उसकी दृष्टि से दूसरे तो दुर, मैं स्वंय बहुत डर रहा हूँ।' भीमसेन हँसे- 'वे श्रीराम दुत पवन पुत्र होने के कारण मेरे ज्येष्ठ भ्राता है तथा हमारे पूज्य हैं। उनके असीम पौरुष का तो अनुमान करना भी सम्भव नहीं; किन्तु उनसे डरो मत ! वे इस युद्ध में शान्त ही रहेंगें।' विशोक ने कहा- 'जानता हूँ कि वे अपने पक्षधर है; किन्तु उनका विकट भयंकर मुख तथा उग्र दृष्टि देखकर सभी के हृदय काँपने लगते हैं। शत्रु की गजसेना उनकी दृष्टि ही डरकर भाग रही है।' श्रीहनुमान जी अर्जुन के रथ की ध्वजापर प्रायः चुपचाप सिर नीचे किये श्रीकृष्णचन्द्र को देखते हुए बैठे रहते थे। कभी-कभी ही वे ध्वजा पर चढ़ते थे और चारों ओर देखने लगते थे। यह वे कुतूहल वश करते थें; किन्तु उस समय कौरव सेना में भगदड़ पड़ जाती थी। उनकी दृष्टि ही सबको बहुत अधिक डरा देती थी। प्रारम्भ से ही अर्जुन के सब प्रतिपक्षी श्रीहनुमान जी पर भी वाण-वर्षा करते रहे थे। वे इस भयानक वानर को अपने आघात से भगा देने का उद्योग करते रहे थे। यह असफल उद्योग भीष्म ओर द्रोण ने भी कम नहीं किया था और कर्ण ने भी कुछ उठा नहीं रखा इसमें; किन्तु वज्रदेह श्रीआञ्जनेय के शरीर पर त्रेता में मेघनाद और रावण के शराघात से ही व्रण नहीं होता था तो ये द्वापरान्त के मानव प्राणी तो अत्यन्त अल्पप्राण थे। इनके बाण तो छोटी कंकड़ियों जैसे भी नहीं लगते थे। केशरी कुमार ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज