पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
6. अक्रूर आये
अक्रूर हस्तिनापुर आये- श्रीकृष्ण के दूत अक्रूर– उनको पाण्डु–पुत्रों की अवस्था का पता लगाने को भेजा भगवान ने। पाण्डु- सद्-असद् की निर्णायिका बुद्धि पण्डा, यह जिसके पास है, वह पाण्डु, अर्थात् विवेक, और उनकी पत्नी कुन्ती अत्यन्त सूक्ष्मदर्शिका बुद्धि। बुद्धि तीक्ष्ण, सूक्ष्म दर्शिका और विवेक सम्पन्न। इसके पांच पुत्र युधिष्ठिर-धर्म, भीम-बल, अर्जुन-सरलता, नकुल-ममत्व राहित्य, सहदेव- देवता, ईश्वर के साथ ही रहने की आस्था, ईश्वर विश्वास। सूक्ष्मदर्शिका का बुद्धि में विवेक हो तो ये पांच गुण उसमें अवश्य आवेंगे। इतना अपनी ओर से करना है और तब यह भी अनिवार्य है कि धृतराष्ट्र- विवेकरूप नेत्र रहित ममत्व के पुत्र- दोष, दुर्गुण, कलिदोष इनको निर्मूल करना चाहेंगे। ऐसे अवसर पर जो सृष्टि का सञ्चालक है, स्वयं स्मरण कर लेता है। उसे पुकारना नहीं पड़ता। उसके चर होकर आते हैं अक्रूर और उन्हें पाण्डवों को कोई सन्देश नहीं देना। उन्हें तो पाण्डवों की स्थिति का पता लगाना है और सन्देश धृतराष्ट्र को देना है। उनका सन्देश क्या- अक्रूर का सन्देश, यही कि क्रूर मत बनो। ममता के पोषण के लिए सद्गुणों को क्षीण मत बनाओ। समदर्शी रहो ! श्रीकृष्ण ने कंस वध करके महाराज उग्रसेन को मथुरा में सिंहासन पर पुन: प्रतिष्ठित किया और स्वयं अग्रज के साथ अध्ययन करने महर्षि सान्दीपनि के यहाँ चले गये। वहाँ से लौटे तो स्वयं मथुरा से जो कंस के द्वारा उत्पीड़ित होकर देश-देशान्तरों में चले गये थे, उन्हें बुला-बुलाकर बसाना प्रारम्भ किया और अक्रूर को बुआ कुन्ती के पितृहीन पुत्रों की स्थिति का पता लगाने हस्तिनापुर भेजा। श्रीकृष्णचन्द्र ग्यारह वर्ष की अवस्था तक व्रज में रहे थे। क्योंकि शिवरात्रि को कंस का वध हुआ, उस समय उनकी अवस्था ग्यारह वर्ष से लगभग 6 महीने अधिक थी। वैशाख-ज्येष्ठ गुरु गृह में रहकर वे लौट आये थे मथुरा। अक्रूर वर्षा ऋतु बीत जाने पर हस्तिनापुर भेजे गये। उस समय श्रीकृष्णचन्द्र की वय का तेरहवां वर्ष प्रारम्भ हुआ था। अक्रूर ने वहाँ अपना आवास विदुर के यहाँ रखा। उन्हें धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों का पाण्डवों के प्रति व्यवहार का पता लगाना था, अत: हस्तिनापुर में वे लगभग पांच महीने रहे। विदुर ने और देवी कुन्ती ने भी जो कुछ कौरवों ने कुटिलता की थी, सब सुनाई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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