पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
41. माता कुन्ती का सन्देश
श्रीकृष्णचन्द्र चले तो भीष्म, द्रोण, कृप, विदुर, धृतराष्ट्र, वाह्लीक, अश्वत्थामा, विकर्ण, युयुत्सु, कर्ण, दुर्योधन आदि भी उनके पीछे कुछ दूर गये। भगवान वासुदेव अपनी बुआ कुन्ती के यहाँ सीधे गये। धृतराष्ट्र तो संजय के साथ लौट गये किन्तु शेष लोग प्रतीक्षा करते रहे। वे देवी कुंती के समीप भी नहीं गये और इतनी दूर भी नही थे कि वहाँ होने वाली बातें सुन न सकें। सब देवी कुन्ती के समीप जायँ यह उचित नहीं था। तब कुन्ती देवी को सबका सत्कार करना पड़ता और वासुदेव को बुआ से अकेले मिलने का अवसर नहीं मिलता। लेकिन सब यह जानने को भी उत्सुक थे कि वहाँ क्या होता है और उन्हें भगवान को विदा करने नगर सीमा तक जाना भी था। श्रीकृष्ण ने जाकर बुआ से चरण स्पर्श किये और कौरव सभा में जो कुछ हुआ था उन्हें संक्षेप में सुनाकर कहा–‘अब आप मुझे आज्ञा दें। मैं पाण्डवों के पास जाऊँगा। आपकी ओर से उनको क्या कहना है?’ कुन्ती देवी स्थिर बैठ गयीं। वे गम्भीर स्वंय में बोलीं–‘केशव ! तुम राजा युधिष्ठिर से कहना कि पृथ्वी का पालन तुम्हारा धर्म है। उसकी बहुत हानि हो रही है। अब तुम व्यर्थ समय नष्ट मत करो। प्रजापति ब्रह्मा ने अपनी भुजाओं से क्षत्रिय को उत्पन्न किया है, अतः उसे अपने बाहुबल से ही आजीविका करनी चाहिए। राजा से सुरक्षित रहकर प्रजा जो धर्म करती है उसका चुतुर्थांश राजा को मिलता है। चारों वर्णो के लोगों को धर्म में स्थित रखने का दायित्व राजा का है। तुम ने इस समय अपनी बुद्धि से जो संतोष का मार्ग अपनाया है वह न तुम्हारे पिता ने अपनाया, न मैने, न तुम्हारे पितामह ने। मैं सदा तुम्हारे यज्ञ, दान, तप, शौर्य, प्रज्ञा, महत्ता और बल की कामना करती रही हूँ। धर्मात्मा पुरुष को चाहिए कि वह राज्य प्राप्त करके दान से, बल से, मधुर वाणी से, लोगों को वश में रखे। ब्राह्मण भिक्षा जीबी बन सकता है किन्तु तुम्हारे लिये यह वृत्ति अनुचित है। कृषि-वाणिज्य वैश्य वृत्ति है। शूद्र की आजीविका सेवा है। क्षत्रिय को प्रजा पालन करके जीवन निर्वाह करना चाहिए। तुम्हारे जिस पैतृक भाग को शत्रुओं ने हड़प लिया है। उसे साम, दाम, दण्ड या भेद नीति-किसी भी उपाय से उसका उद्धार करना चाहिए। इससे बढ़कर दु:ख की और क्या बात होगी कि तुम्हारे जैसा पुत्र पाकर भी दूसरों के टुकड़ों पर दृष्टि लगाए रहती हूँ। अतः क्षात्र धर्म अपनाओ ! युद्ध करो।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज