पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
39. शान्ति दूत
अपने मामा शकुनि को लेकर सबेरे ही दुर्योधन विदुर के घर पहुँचा। उसने श्रीकृष्ण को समाचार दिया - 'महाराज धृतराष्ट्र, पितामह भीष्म और सभी कौरव सभा में आगये है। आपकी वहाँ प्रतीक्षा हो रही है।' श्रीकृष्ण ने दोनों का अभिनन्दन किया। दारुक ने रथ उपस्थित किया तो उस पर वासुदेव विदुर के साथ बैठ गये। दुर्योधन और शकुनि दूसरे रथ में श्रीकृष्ण के पीछे गये। कौरव सभा में श्रीकृष्ण ने सात्यकि का हाथ पकड़े हुए प्रवेश किया। उनके आगे मार्ग दिखाते दुर्योधन और कर्ण चल रहे थे। कृतवर्मा तथा वृष्णिवंशी वीर थे। उन सर्वेश की कान्ति ने सबको वहाँ निस्तेज कर दिया। उनके आते ही भीष्म, द्रोणादि सब उठ खड़े हुए। धृतराष्ट्र की आज्ञा से श्रीकृष्ण के लिए सर्वतोभद्र नामक स्वर्ण सिंहासन रखा गया। मधुसूदन सभी आगत राजाओं से मिलते, उनसे कुशल प्रश्न करते, उनका अभिवादन स्वीकार करते अपने सिंहासन तक पहुँचे ही थे कि अन्तरिक्ष में देवर्षि नारदादि दृष्टि पड़े। भगवान वासुदेव ने धीरे से भीष्म से कहा - 'इस राजसभा को देखने ऋषिगण पधारे हैं। आसन देकर उनका आवाहन कीजिये। उनके बैठे बिना यहाँ कोई बैठ नहीं सकता। इन महर्षियों का शीघ्र पूजन किया जाना चाहिए।' इतने में मुनिगण सभा के द्वार पर आ गये। भीष्म ने सेवकों द्वारा सबके लिए आसन मँगाये। जब महर्षिगण बैठ गये तो अर्ध्य अर्पित करके उनका पूजन किया गया। सब राजाओं के बैठ जाने पर ऋषियों का सत्कार हो जाने पर श्रीकृष्णचन्द्र धृतराष्ट्र को सम्बोधित करके मेघ गम्भीर स्वर में बोले - 'राजन ! मैं यहाँ इसलिए आया हूँ कि क्षत्रिय वीरों का संहार हुए बिना ही कौरव-पाण्डवों में सन्धि हो जाय। इस समय राजाओं में कुरुवंश ही श्रेष्ठ है। इसमें शास्त्र तथा सदाचार का सम्यक आदर है। कृपा, दया, करुणा, मृदुता, सरलता, क्षमा और सत्य से सद्गुण दूसरों की अपेक्षा करुवंश में अधिक हैं। ऐसे उत्तम वंश में कोई अनुचित बात आपके कारण नहीं होनी चाहिए। कौरवों में कोई असदाचरण गुप्त या प्रकट रूप से होता है तो उसे रोकना आपका ही काम है।' अब वासुदेव ने स्पष्ट दोषारोपण किया - 'आपके पुत्र दुर्योधनादि न केवल धर्म से, अपितु अर्थ से भी मुख फेरकर क्रूर पुरुषों के समान आचरण करते हैं। लोभ के वश इन्होंने धर्म की मर्यादा त्याग दी है। अपने भाइयों के साथ इनका व्यवहार अशिष्ट है। आपको यह सब बातें ज्ञात हैं। इसके परिणाम स्वरूप कौरवों ने भयंकर आपत्ति आमन्त्रित कर ली है। इस आपत्ति की उपेक्षा की गयी तो पूरी पृथ्वी चौपट हो जायेगी। आप यदि अपने कुल को नाश से बचाना चाहें तो इसका निवारण किया जा सकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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