पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
36. स्वागत की तैयारी
श्रीकृष्ण आ रहे हैं यह समाचार धृतराष्ट्र को मिला तो उन्होंने भीष्म, द्रोण, संजय, विदुर, दुर्योधनादि से कहा - 'वे वासुदेव सब प्रकार हमारे माननीय हैं, पूज्य हैं। उनमें धैर्य, वीर्य, प्रज्ञा और ओज सभी गुण हैं। उनका सत्कार करने में ही सुख है। उनकी अवमानना करके प्राणी अपने लिए दु:ख ही आमंत्रित करता है। यदि वे हमारे सत्कार से सन्तुष्ट हो गये तो दूसरों के समान हमारे भी सभी अभीष्ट सिद्ध हो जायेंगे। दुर्योधन ! तुम उनके स्वागत की तैयारी करो। मार्ग में ही सब आवश्यक सामग्री से सज्जित विश्राम-स्थान बनवाओ। ऐसा उपाय करो जिससे श्रीकृष्ण तुम पर प्रसन्न हो जायें।' भीष्म ने समर्थन किया। दुर्योधन ने मार्ग में स्थान-स्थान पर विश्राम-स्थान बनवाये। उनमें देव दुर्लभ सुखोपभोग सजाये। बहुमूल्य रत्न वहाँ भेंट देने को रखे। व्यक्ति जैसा होता है, अपनी दृष्टि से ही सारे संसार को देखता है। जिस वस्तु में, भोग में, पद में उसकी महत्व बुद्धि है, वह जिसके पास हो, उसको महान मानता है। दूसरों को वही देकर सम्मानित करना चाहता है दुर्योधन के लिए ऐश्वर्य, रत्न बहुत महत्त्व के थे। उसने श्रीकृष्ण के स्वागत में इन्हें सजाने में तनिक भी कृपणता नहीं की; किन्तु सर्वेश्वरेश्वर श्रीपति को कोई भी प्राणी पदार्थों से सन्तुष्ट कर सकेगा यह उसकी दुराशा ही तो है। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के बनवाये विश्राम स्थानों तथा उसके रत्नों की ओर देखा भी नहीं। धृतराष्ट्र को दूतों से सूचना मिलती जा रही थी। उन्होंने विदुर से कहा - 'वे पुरुषोत्तम उपप्लव्य से आगे बढ़ चुके हैं। आज उन्होंने वृकस्थल में रात्रि विश्राम किया है। कल प्रात: वे यहाँ पहुँच जायेंगे। वे त्रिलोकी के स्वामी, सृष्टिकर्ता के भी पिता हैं। अत: आप घोषणा करा दें कि हमारी बालक-वृद्ध, स्त्री-पुरुष समस्त प्रजा को साक्षात सूर्य के समान श्रीकृष्ण का दर्शन करना चाहिए। 'सब ओर बड़ी-बड़ी ध्वजाएं गाड़कर उन पर पताकाएं लगवा दो। उनके आने के मार्ग को स्वच्छ करके उस पर सुगन्धित जल छिड़कवा दो। दु:शासन का भवन दुर्योधन के भवन से सुन्दर है। शीघ्र स्वच्छ कराके भली प्रकार सजा दो। मेरे और दुर्योधन के भवनों में जो भी उत्तम सामग्री हो, सब उसमें सजा दो और उसमें-से जो भी पदार्थ श्रीकृष्ण को प्रिय लगे, उनके योग्य हों, उन्हें भेंट कर दो।' विदुर ने कहा - 'राजन, आप प्रतिष्ठित हैं। लोक में सम्मानित हैं। इस समय जो कुछ कह रहे हैं वे बातें शास्त्र सम्मत हैं और आपकी स्थित बुद्धि की सूचक हैं। लेकिन मैं आपको वास्तविक बात बताए देता हूँ। धन देकर अथवा किसी दूसरे प्रयत्न से आप श्रीकृष्ण को अर्जुन से पृथक नहीं कर सकते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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