पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
34. पाञ्चाली का आक्रोश
धर्मराज युधिष्ठिर के धर्म तथा अर्थ युक्त वचन सुनकर और भीमसेन को शान्त देखकर द्रुपदनन्दिनी सहदेव तथा सात्यकि की प्रशंसा करते हुए रोकर बोली - 'मधुसूदन ! दुर्योधन ने जो व्यवहार हमारे साथ किया है उसे आप जानते हैं। राजा धृतराष्ट्र ने संजय को जो संदेश दिया था उसे भी आपने सुना। अत: यदि दुर्योधन बिना हमारा राज्य लौटाये सन्धि करना चाहे तो आप उसे कदापि स्वीकार न करें। 'सामके या दान के द्वारा कौरवों से कोई प्रयोजन सिद्ध होने की आशा नहीं है इसलिए आप भी उनके साथ कोई ढील-ढाल न करें। जिसे भी अपनी जीवि का बचाने की इच्छा हो उस साम तथा दान से न दबने वाले शत्रु के प्रति दण्ड के प्रयोग में हिचकना नहीं चाहिए। अत: आपको भी पाण्डव तथा सृंजय वीरों को साथ लेकर शत्रु को शीघ्र दण्ड देना है। जो दोष अवध्य का वध करने में है वही दोष क्षत्रिय के लिए बध्य का वध ने करने में आपके लिए अभीष्ट होना चाहिए, जिससे आपको दोष न लगे। 'मैं यज्ञवेदी से उत्पन्न महाराज द्रुपद की अयोनिजा पुत्री हूँ। अग्नितनय धृष्टद्युम्न की सगी बहिन हूँ। महात्मा पाण्डु की पुत्र वधू हूँ। लोकपालों के समान तेजस्वी पाण्डवों की पट्टमहिषी हूँ और निखिल लोकनायक आपकी सखी हूँ। इतनी सम्मानिता होने पर भी मुझे केश पकड़कर सभा में लाया गया। वहीं इन पाँचों पतियों के रहते आपके सर्वव्यापक होते मुझे अपमानित किया गया। पाण्डव, यादव और पाञ्चाल वीरों के जीवित रहते मैं इन पापियों की सभा में दासी की दशा में पहुँची।' द्रौपदी के बड़े-बड़े नेत्र लाल हो रहे थे। उनसे आँसू की बड़ी-बड़ी बूँदें टपाटप गिर रही थीं। उसका स्वर क्रोध से काँप रहा था - 'मेरी वह दुर्गति देखकर भी जो उस समय शान्त रह गये थे, वे अब भी शान्त हैं किन्तु यदि दुर्योधन अब भी जीवित रहता है तो अर्जुन की धनुर्धरता और भीम के पराक्रम को धिक्कार है। मुझे इनका नहीं, केवल आपका ही भरोसा है। आप यदि मुझे अपनी कृपापात्री समझते हैं तो धृतराष्ट्र के पुत्रों पर कोप कीजिये।' द्रौपदी अपने काले लम्बे केश बाँये हाथ में लिये श्रीकृष्ण के समीप आगयी और उन्हें दिखाकर बोली - 'आप शत्रुओं से सन्धि करने तो जा रहे हैं किन्तु वहाँ दु:शासन के द्वारा खींचे गये अपनी कृष्णा के इन केशों को भूल न जायें। ये तब तक नहीं बाँधे जायेंगे जब तक दु:शासन की साँवली भुजा काटकर उसके रक्त से इन्हें सिञ्चित नहीं किया जायेगा।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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