- महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत 16वें अध्याय में संजय ने पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों के द्वन्द्वयुद्ध युद्ध का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
पाण्डव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध
संजय कहते हैं- प्रभो! तदनन्तर आपके सभी सैनिक रणभूमि में मद्रराज को आगे करके पुनः बड़े वेग से पाण्डवों पर टूट पड़े। युद्ध के लिये उन्मत्त रहने वाले आपके सभी योद्धा यद्यपि पीड़ित हो रहे थे, तथापि संख्या में अधिक होने के कारण उन सबने धावा बोलकर क्षणभर में पाण्डव योद्धाओं को मथ डाला। समरांगण में कौरवों की मार खाकर पाण्डव योद्धा श्रीकृष्ण और अर्जुन के देखते-देखते भीमसेन के रोकने पर भी वहाँ ठहर न सके। तदनन्तर दूसरी ओर क्रोध में भरे हुए अर्जुन ने सेवकों सहित कृपाचार्य और कृतवर्मा को अपने बाणसमूहों से ढक दिया। सहदेव ने सेना सहित शकुनि को बाणों से आच्छादित कर दिया। नकुल पास ही खडे़ होकर मद्रराज शल्य की ओर देख रहे थे। द्रौपदी के पुत्रों ने बहुत-से राजाओं को आगे बढ़ने से रोक रखा था। पांचाल राजकुमार शिखण्डी ने द्रोणपुत्र अश्वत्थामा को रोक दिया।
शल्य का पराक्रम
भीमसेन ने हाथ में गदा लेकर राजा दुर्योधन को रोका और सेना सहित कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने शल्य को। तत्पश्चात् संग्राम में मैंने राजा शल्य का बहुत बड़ा पराक्रम यह देखा कि वे अकेले ही पाण्डवों की सम्पूर्ण सेना के साथ युद्ध कर रहे थे। उस समय शल्य युधिष्ठिर के समीप रणभूमि में ऐसे दिखायी दे रहे थे, मानो चन्द्रमा के समीप शनैश्वर नामक ग्रह हो। वे विषधर सर्पों के समान भयंकर बाणों द्वारा राजा युधिष्ठिर को पीड़ित करके पुनः भीमसेन की ओर दौडे़ और उन्हें अपने बाणों की वर्षा से आच्छादित करने लगे। उनकी वह फुर्ती और अस्त्रविद्या का ज्ञान देखकर आपके और शत्रुपक्ष के सैनिकों ने भी उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। शल्य के द्वारा पीड़ित एवं अत्यन्त घायल हुए पाण्डव सैनिक युधिष्ठिर के पुकारने पर भी युद्ध छोड़कर भाग चले।। अब मद्रराज के द्वारा इस प्रकार पाण्डव-सैनिक का संहार होने लगा, तब पाण्डव पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर अमर्ष के वशीभूत हो गये।
युधिष्ठिर का संवाद
तदनन्तर उन्होंने अपने पुरुषार्थ का आश्रय ले मद्रराज पर प्रहार आरम्भ किया। महारथी युधिष्ठिर ने यह निश्चय कर लिया कि आज या तो मेरी विजय होगी अथवा मेरा वध हो जायेगा। उन्होंने अपने समस्त भाईयो तथा श्रीकृष्ण और सात्यकि को बुलाकर इस प्रकार कहा- बन्धुओं! भीष्म, द्रोण, कर्ण तथा अन्य जो-जो राजा दुर्योधन के लिये पराक्रम दिखाये थे, वे सब-के-सब संग्राम में मारे गये। तुम लोगों ने पुरुषार्थ करके उत्साहपूर्वक अपने-अपने हिस्से का कार्य पूरा कर लिया। अब एकमात्र महारथी शल्य शेष रह गये हैं, जो मेरे हिस्से में पड़ गये हैं। अतः आज मैं इन मद्रराज शल्य को युद्ध में जीतने की आशा करता हूँ। इसके सम्बन्ध में मेरे मन में जो संकल्प है, वह सब तुम लोगों से बता रहा हूँ, सुनो।
जो समरांगण में इन्द्र के लिये भी अजेय तथा शूरवीरों द्वारा सम्मानित हैं, वे दोनों माद्रीकुमार वीर नकुल और सहदेव मेरे रथ के पहियों की रक्षा करें। क्षत्रिय-धर्म को सामने रखते हुए ये सम्मान पाने के योग सत्यप्रतिज्ञ नकुल और सहदेव मेरे लिये समरांगण में अपने मामा के साथ अच्छी तरह युद्ध करें। फिर या तो शल्य रणभूमि में मुझे मार डालें या मैं उनका वध कर डालूँ। आप लोगों का कल्याण हो। विश्वविख्यात वीरों! तुम लोग मेरा यह सत्य वचन सुन लो। राजाओं! मैं क्षत्रिय धर्म के अनुसार अपने हिस्से का कार्य पूर्ण करने का संकल्प लेकर अपनी विजय अथवा वध के लिये मामा शल्य के साथ आज युद्ध करूँगा। अतः रथ जोतने वाले लोग शीघ्र ही मेरे रथ पर शास्त्रीय विधि के अनुसार अधिक-से-अधिक शस्त्र तथा अन्य सब आवश्यक सामग्री सजाकर रख दे।[1] (नकुल-सहदेव अतिरिक्त) सात्यकि मेरे दाहिने चक्र की रक्षा करें और धृष्टद्युम्न बायें चक्र की। आज कुन्ती कुमार अर्जुन मेरे पृष्ठभाग की रक्षा में तत्पर रहें और शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ भीमसेन मेरे आगे-आगे चलें। ऐसी व्यवस्था होने पर मैं इस महायुद्ध में शल्य से अधिक शक्तिशाली हो जाऊँगा। उसके ऐसा कहने पर राजा का प्रिय करने की इच्छा वाले भाईयों ने उस समय वैसा ही किया।[2]
युधिष्ठिर द्वारा शल्य पर आक्रमण करना
तदनन्तर उस युद्धस्थल में पुनः पाण्डव सैनिक विशेषतः पांचालों, सोमकों और मत्स्य देशीय योद्धाओं के मन में महान हर्षोल्लास छा गया। राजा युधिष्ठिर ने उस समय पूर्वोक्त प्रतिज्ञा करके मद्रराज शल्य पर चढ़ाई की। फिर तो पांचाल योद्धा शंख, भेरी आदि सैकड़ों प्रकार के प्रचुर रणवाद्य बजाने और सिंहनाद करने लगे। उन कुरुकुल के श्रेष्ठ वीरों ने रोष में भरकर महान हर्षनाद के साथ वेगशाली वीर मद्रराज शल्य पर धावा किया। वे हाथियों के घण्टों की आवाज, शंखों की ध्वनि तथा वाद्यों के महान घोष से पृथ्वी को गुँजा रहे थे। उस समय आपके पुत्र दुर्योधन तथा पराक्रमी मद्रराज शल्य ने उन सबको आगे बढ़ने से रोका। ठीक, उसी तरह, जैसे अस्ताचल और उदयाचल दोनों बहुसंख्यक महामेघों को रोक देते हैं। इसी प्रकार महामना कुरुराज युधिष्ठिर ने भी सुन्दर धनुष हाथ में लेकर द्रोणाचार्य के दिये हुए नाना प्रकार के उपदेशों का प्रदर्शन करते हुए शीघ्रतापूर्वक सुन्दर एवं विचित्र रीति के बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। रण में विचरते हुए युधिष्ठिर की कोई भी त्रुटि किसी ने नहीं देखी। मांस के लोभ से पराक्रम प्रकट करने वाले दो सिंहों के समान वे दोनों वीर युद्धस्थल में नाना प्रकार के बाणों द्वारा एक दूसरे को घायल करने लगे।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
सम्बंधित लेख
महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ
शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना
| धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना
| दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना
| धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना
| कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन
| भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध
| अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण
| दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना
| कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना
| दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना
| अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव
| दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना
| शल्य के वीरोचित उद्गार
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना
| उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना
| कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन
| नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध
| शल्य का पराक्रम
| कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध
| भीम के द्वारा शल्य की पराजय
| भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध
| दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध
| दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध
| युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध
| मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध
| अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध
| दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध
| शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध
| पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध
| भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय
| युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय
| भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध
| सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय
| मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन
| पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा
| भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार
| दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना
| धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध
| सात्यकि द्वारा शाल्व का वध
| सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध
| कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय
| दुर्योधन का पराक्रम
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम
| कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध
| उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम
| शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय
| अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा
| अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार
| अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार
| अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज
| सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
| भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत
| अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध
| अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त
| सहदेव के द्वारा उलूक का वध
| सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध
| संजय का क़ैद से छूटना
| दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश
| युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत
| युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना
| कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना
| युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत
| सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद
| युधिष्ठिर के कहने से दुर्योधन का सरोवर से बाहर आना
| दुर्योधन का किसी एक पांडव से गदायुद्ध हेतु तैयार होना
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को फटकारना
| श्रीकृष्ण द्वारा भीमसेन की प्रशंसा
| भीम और दुर्योधन में वाग्युद्ध
| बलराम का आगमन और सम्मान
| भीम और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ
| बलदेव की तीर्थयात्रा
| प्रभासक्षेत्र के प्रभाव तथा चंद्रमा के शापमोचन की कथा
| उदपान तीर्थ की उत्पत्ति तथा त्रित मुनि के कूप में गिरने की कथा
| त्रित मुनि का यज्ञ
| त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना
| वैशम्पायन द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन
| नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन
| बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश
| सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति
| मंकणक मुनि का चरित्र
| औशनस एवं कपालमोचन तीर्थ की माहात्म्य कथा
| रुषंगु के आश्रम पृथूदक तीथ की महिमा
| आर्ष्टिषेण एवं विश्वामित्र की तपस्या तथा वरप्राप्ति
| अवाकीर्ण तीर्थ की महिमा और दाल्भ्य की कथा
| यायात तीर्थ की महिमा और ययाति के यज्ञ का वर्णन
| वसिष्ठापवाह तीर्थ की उत्पत्ति
| ऋषियों के प्रयत्न से सरस्वती नदी के शाप की निवृत्ति
| सरस्वती नदी के जल की शुद्धि
| अरुणासंगम में स्नान से राक्षसों और इन्द्र का संकटमोचन
| कुमार कार्तिकेय का प्राकट्य
| कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारी
| स्कन्द का अभिषेक
| स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन
| स्कन्द की मातृकाओं का परिचय
| स्कन्द देव की रणयात्रा
| स्कन्द द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्यों का सेनासहित संहार
| वरुण का अभिषेक
| अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग
| श्रुतावती और अरुन्धती के तप की कथा
| इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थ की महिमा
| असित देवल तथा जैगीषव्य मुनि का चरित्र
| दधीच ऋषि तथा सारस्वत मुनि के चरित्र का वर्णन
| वृद्ध कन्या का चरित्र
| वृद्ध कन्या का शृंगवान से विवाह तथा स्वर्गगमन
| ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन
| प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वती की महिमा
| बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना
| भीम-दुर्योधन का युद्ध देखने के लिए बलराम का जाना
| बलराम की सलाह से सबका कुरुक्षेत्र के समन्तपंचक तीर्थ में जाना
| समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी
| दुर्योधन के लिए अपशकुन
| भीमसेन का उत्साह
| भीम और दुर्योधन का वाग्युद्ध
| भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध
| कृष्ण और अर्जुन की बातचीत
| अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना
| दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना
| भीमसेन द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार
| युधिष्ठिर का भीम को अन्याय करने से रोकना
| युधिष्ठिर का दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना
| क्रोधित बलराम को कृष्ण का समझाना
| युधिष्ठिर के साथ कृष्ण और भीम की बातचीत
| पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति
| कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर
| कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान
| पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना
| अर्जुन के रथ का दग्ध होना
| पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना
| कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना
| कृष्ण का पांडवों के पास लौटना
| दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप
| दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना
| दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना
| अश्वत्थामा का सेनापति पद पर अभिषेक
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज