हिन्दू धर्म संस्कारों में परिव्राज्य या सन्न्यास संस्कार पंचदश संस्कार है।
- सन्न्यास का अभिप्राय है सम्यक प्रकार से त्याग।
- सन्न्यास- आश्रम में प्रवेश करने के लिए भी संस्कार करना पड़ता है। इसलिये श्रुति में कहा गया है कि ब्रह्मचर्याश्रम समाप्त करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करे, गृहस्थाश्रम के पश्चात् वानप्रस्थाश्रम में प्रवेश करे और उसके बाद अन्तिम- चौथे सन्न्यास आश्रम में प्रवेश करे, यही वैदिक मान्यता है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 'ब्रह्मचर्यं समाप्य गृही भवेत्। गृहाद् वनी भूत्वा प्रव्रजेत्।'
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