पयहारी कृष्‍णदास

पयहारी कृष्‍णदास
पयहारी कृष्‍णदास
पूरा नाम पयहारी कृष्‍णदास
अन्य नाम पयहारीबाबा
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र जयपुर, राजस्थान के निकट 'गलता' नामक स्थान
प्रसिद्धि संत
विशेष योगदान पयहारी जी ने गलता तथा आमेर के कनफटे वैष्‍णव द्रोही योगियों को अपनी सिद्धता के बल से उस मठ से निकाल दिया था।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी इस संसार सागर में जो कनक-कामिनी रूप दो भँवर सबको डुबा देने वाले हैं, उन दोनों के रंग से पयहारी कृष्‍णदास जी नहीं रँगे। संतों के अमित दिव्‍य गुणों से गलित अर्थात परिपक्‍व, सदाचार एवं सुन्‍दर नीतियुक्त, ‘गलते’ गादी में आप विराजमान हुए।

पयहारी कृष्‍णदास जी गालव-ऋषि आश्रम के प्रसिद्ध संत थे। आपने आजन्‍म पय (दूध) का ही आहार किया, जिससे आप पयहारीबाबा के नाम से विख्‍यात हैं। आपकी जाति दाहिमा (दाधीच) ब्राह्मण थी। आप बालब्रह्मचारी थे। उदासीनता (वैराग्‍य) की तो पयहारी कृष्‍णदास मर्यादा ही थे।

परिचय

जयपुर में गलता नाम का एक प्रसिद्ध स्‍थान है, जो गालव-ऋषि का आश्रम माना जाता है। वहाँ के स्‍वामी कृष्‍णदास जी प्रसिद्ध संत हो गये हैं। आपने आजन्‍म पय (दूध) का ही आहार किया, जिससे आप पयहारीबाबा के नाम से विख्‍यात हैं। आपकी जाति दाहिमा (दाधीच) ब्राह्मण थी। आप बालब्रह्मचारी थे। भगवद्भजन में लवलीन रहना, यही आपका रात-दिन का काम था।

वैष्‍णव द्रोही योगियों को अपनी चमत्कारिक छवि प्रस्तुत करना

पयहारी जी ने गलता तथा आमेर के कनफटे वैष्‍णव द्रोही योगियों को अपनी सिद्धता के बल से उस मठ से निकाल दिया था। रातभर रहने के लिये उस जगह आप गये थे, परंतु उन विमुख योगियों ने कहा- "यहाँ से उठ जाओ।" तब आपने अपनी धूनी की आग कपड़े में बाँध ली और दूसरी ठौर जा बैठे, वहीं आग कपड़े में से रख दी। कपड़े का न जलना देखकर योगियों का महन्‍त बाघ बनकर आप पर लपका। आपने कहा- "तू कैसा गधा है।" तुरंत वह गधा हो गया और फिर अपने बल से मनुष्‍य न बन सका। आमेर के राजा पृथ्‍वीराज ने आपकी सेवा में जाकर जब बड़ी प्रार्थना की, तब आपने गधे को फिर आदमी बनाकर आज्ञा दी कि- "इस जगह को तुम सब छोड़कर अलग रहो और इस धूनी में लकड़ियाँ पहुँचाया करो।" उन सबों ने स्‍वीकार किया और राजा पृथ्‍वीराज भी श्रीपयहारी जी का चेला हो गया; तभी से गलता आपकी प्रसिद्ध गादी हुई।[1]

  • वन में गौएँ श्रीपयहारी जी को आप-से-आप दूध देती थीं। आपने आमेर की एक गणिका को भी उपदेश दिया था, जिसने परम गति पायी।

चमत्कारिक प्रसंग

कहते हैं कि एक समय राजा पृथ्‍वीराज जी ने पयहारी जी से श्रीद्वारकाधीश के दर्शन करने के लिये द्वारका चलने की प्रार्थना की। तब आपने राजा की भक्ति देख अपनी यो‍ग-सिद्धि से आधी रात के समय राजमहल में प्रकट हो राजा को श्रीद्वारकाधीश के दर्शन वहीं करा दिये। फिर राजा ने द्वारका चलने को कभी नहीं कहा।

कृष्‍णदास कलि जीति, न्‍यौति नाहर पल दीयो।
अतिथिधर्म प्रतिपालि, प्रकट जस जग में लीयो।।
उदासीनता अवधि, कनक कामिनि नहिं रातो।
राम चरन मकरंद रहत निसि दिन मद-मातो।।
गलतें गलित अमित गुन, सदाचार, सुठि नीति।
दधीचि पाछें दूसरि करी कृष्‍णदास कलि जीति।।

जैसे दधीचि ऋषि ने देवताओं के माँगने से अपना शरीर दे दिया, ऐसे ही दधीचि-गोत्र में उत्‍पन्‍न स्‍वामी श्रीकृष्‍णदास पयहारी जी ने कलिकाल को जीतकर दधीचि की नाईं दूसरी बात की।

  • एक समय पयहारी कृष्‍णदास की गुफा के सामने बाघ आया तो आपने उसको अतिथि जान, नेवता देकर आतिथ्‍यधर्म-प्रतिपालनपूर्वक अपना पल (मांस) काटकर दिया। इस प्रकार के प्रसिद्ध यश को आप जग में प्राप्‍त हुए।


उदासीनता (वैराग्‍य) की तो पयहारी कृष्‍णदास मर्यादा ही थे। इस संसार सागर में जो कनक-कामिनी रूप दो भँवर सबको डुबा देने वाले हैं, उन दोनों के रंग से आप नहीं रँगे। केवल श्रीरामचरण कमल के अनुराग रूपी मकरन्‍द से भ्रमर के सदृश मदमत्त-आनन्दित रहते थे। संतों के अमित दिव्‍य गुणों से गलित अर्थात परिपक्‍व, सदाचार एवं सुन्‍दर नीतियुक्त, ‘गलते’ गादी में आप विराजमान हुए।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 पुस्तक- भक्त चरितांक | प्रकाशक- गीता प्रेस, गोरखपुर | विक्रमी संवत- 2071 (वर्ष-2014) | पृष्ठ संख्या- 697

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