विरह-पदावली -सूरदास
(312) (सूरदास जी के शब्दों में) किसी यात्री ने व्रज में जाकर कहा- ‘सूना जाता है कि श्यामसुन्दर (अब) समुद्र-किनारे जा रहे हैं।’ यह सुनते ही (व्रज के लोगों के) सारे अंग शिथिल हो गये; पर वज्र के समान (उनका) हृदय फट नहीं गया। सभी पुरुष-स्त्री घर-घर में विचार (चिन्ता) करने लगे कि अब हमें श्रीनन्दनन्दन कैसे मिलेंगे। समीप रहते तो (मिलन की कुछ) आशा थी, पर अब तो (वे) दूर जा रहे हैं। भगवान की कृपा के बिना अब (मिलन का) दूसरा कोई उपाय नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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