- महाभारत अनुशासन पर्व के दानधर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 38 में पंचचूड़ा अप्सरा का नारद से स्त्री दोषों का वर्णन हुआ है[1]-
विषय सूची
युधिष्ठिर का प्रस्न
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! युधिष्ठिर ने कहा- भरतश्रेष्ठ! मैं स्त्रियों के स्वभाव का वर्णन सुनना चाहता हूँ, क्योंकि सारे दोषों की जड़ स्त्रियाँ ही हैं। वे ओच्छी बुद्धिवाली मानी गयी हैं।
भीष्म का संवाद
भीष्म जी ने कहा- राजन! इस विषय में देवर्षि नारद का अप्सरा पंचचूड़ा के साथ संवाद हुआ था, उसी प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया जाता है। पहले की बात है, सम्पूर्ण लोकों में विचरते हुए देवर्षि नारद ने एक दिन ब्रह्मलोक की अनिन्दय सुन्दरी अप्सरा पंचचूड़ा को देखा। मनोहर अंगों से युक्त उस अप्सरा को देखकर मुनि ने उसके सामने अपना प्रश्न रखा- ‘सुमध्यमे! मेरे हदय में एक महान संदेह है। उसके विषय में मुझे यथार्थ बात बताओ।'
पंचचूड़ा अप्सरा का नारद से स्त्री दोषों का वर्णन
भीष्म जी कहते हैं- युधिष्ठिर! नारद जी के ऐसा कहने पर पंचचूड़ा अप्सरा ने उन्हें इस प्रकार उत्तर दिया- "यदि आप मुझे उस प्रश्न का उतर देने के योग्य मानते हैं और वह बताने योग्य है तो अवश्य बताऊँगी।" नारद जी ने कहा- भद्रे! मैं तुम्हें ऐसी बात बताने के लिये नहीं कहूँगा जो कहने योग्य न हो; मैं तुम्हारे मुँह से स्त्रियों के स्वभाव का वर्णन सुनना चाहता हूँ। भीष्म जी कहते हैं- राजन! नारद जी का यह वचन सुनकर वह उत्तम अप्सरा बोली- ‘देवर्षे! मैं स्त्री होकर स्त्रियों की निन्दा नहीं कर सकती। ‘संसार में जैसे स्त्रियाँ हैं उनके जैसे स्वभाव हैं, वे सब आपको विदित हैं; अत: देवर्षे! आप मुझे ऐसे कार्य में न लगावें। तब देवर्षि ने उससे कहा- ‘सुमध्यमे! तुम सच्ची बात बताओ। झूठ बोलने में दोष लगता है। सच कहने में कोई दोष नहीं है।' उनके इस प्रकार समझाने पर उस मनोहर हास्य वाली अप्सरा ने कहने के लिये दृढ़़ निश्चय करके स्त्रियों के सच्चे और स्वाभाविक दोषों को बताना आरम्भ किया। पंचचूड़ा बोली- नारद जी! कुलीन, रूपवती और सनाथ युवतियाँ भी मर्यादा के भीतर नहीं रहती हैं। यह स्त्रियों का दोष है। स्त्रियों से बढ़कर पापिष्ठ दूसरा कोई नहीं है। स्त्रियाँ सारे दोषों की जड़ हैं, इस बात को आप भी अच्छी तरह जानते हैं। यदि स्त्रियों को दूसरों से मिलने का अवसर मिल जाये तो वे सदगुणों में विख्यात, धनवान, अनुपम रूप-सौन्दर्यशाली तथा अपने वश में रहने वाली पतियों की भी प्रतीक्षा नहीं कर सकतीं। प्रभो! हम स्त्रियों में यह सबसे बड़ा पातक है कि हम पापी से पापी पुरुषों को भी लाज छोड़कर स्वीकार कर लेती हैं। जो पुरुष किसी स्त्री को चाहता है, उसके निकट तक पहुँचता है और उसकी थोड़ी-सी सेवा कर देता है, उसी को वे युवतियाँ चाहने लगती हैं। स्त्रियों में मर्यादा का कोई स्थान नहीं रहता। जब तक उनको कोई चाहने वाला पुरुष न मिले और परिजनों का भय बना रहे तथा पति पास हों, तभी ये नारियाँ मर्यादा के भीतर रह पाती हैं। इनके लिये कोई भी पुरुष ऐसा नहीं है जो अगम्य हो। उनका किसी अवस्था–विशेष पर भी निश्चय नहीं रहता। कोई रूपवान हो या कुरुप; पुरुष है, इतना ही समझकर स्त्रियाँ उसका उपभोग करती हैं। स्त्रियाँ न तो भय से, न दया से, न धन के लाभ से और न जाति या कुल के सम्बन्ध से ही पतियों के पास टिकती हैं।
जो जवान हैं, सुन्दर गहने और अच्छे कपड़े पहनती हैं, ऐसी स्वेच्छाचारिणी स्त्रियों के चरित्र को देखकर कितनी ही कुलवती स्त्रियाँ भी वैसी ही बनने की इच्छा करने लगती हैं। जो बहुत सम्मानित और पति की प्यारी स्त्रियाँ हैं, जिनकी सदा अच्छी तरह रखवाली की जाती है वे भी घर में आने-जाने वाले कुबडों, अन्धों, गूँगों और बौनों के साथ भी फँस जाती हैं। महामुनि देवर्षे! जो पंगु हैं अथवा जो अत्यन्त घृणित मनुष्य हैं, उनमें भी स्त्रियों की आसक्ति हो जाती है। इस संसार में कोई भी पुरुष स्त्रियों के लिये अगम्य नहीं है। ब्राह्मण! यदि स्त्रियों को पुरुष की प्राप्ति किसी प्रकार भी संभव न हो और पति भी दूर गये हों तो वे आप में ही कृत्रिम उपायों से ही मैथुन में प्रवृत हो जाती हैं। पुरुषों के न मिलने से, घर के दूसरे लोगों के भय से तथा वध और बन्धन के डर से स्त्रियाँ सुरक्षित रहती हैं। स्त्रियों का स्वभाव चंचल होता है। उनका सेवन बहुत ही कठिन काम है। इनका भाव जल्दी किसी के समझ में नहीं आता; जैसे विद्वान पुरुष की वाणी दुर्बोध होती है। अग्नि कभी ईंधन से तृप्त नहीं होती, समुद्र कभी नदियों से तृप्त नहीं होता, मृत्यु समस्त प्राणियों को एक साथ पा जाये तो भी उनसे तृप्त नहीं होती; इसी प्रकार सुन्दर नेत्रों वाली युवतियाँ पुरुषों से कभी तृप्त नहीं होतीं। देवर्षे! सम्पूर्ण रमणियों के सम्बन्ध में दूसरी भी रहस्य की बात यह है कि किसी मनोरम पुरुष को देखते ही स्त्री की योनि गीली हो जाती है। सम्पूर्ण कामनाओं का दाता तथा मनचाही करने वाला पति भी यदि उनकी रक्षा में तत्पर रहने वाला हो तो वे अपने पति के शासन को भी सहन नहीं कर सकतीं। वे न तो काम-भोग की प्रचुर सामग्री को, न अच्छे-अच्छे गहनों को और न उत्तम घरों को ही उतना अधिक महत्व देती हैं, जैसा कि रति के लिये किये गये अनुग्रह को। यमराज, वायु, मृत्यु, पाताल, बड़वानल, छुरे की धार, विष, सर्प और अग्नि- ये सब विनाश के हेतु एक तरफ और स्त्रियाँ अकेली एक तरफ बराबर हैं। नारद! जहाँ से पाँचों महाभूत उत्पन्न हुए हैं, जहाँ से विधाता ने सम्पूर्ण लोकों की सृष्टि की है तथा जहाँ से पुरुषों और स्त्रियों का निर्माण हुआ है, वहाँ से स्त्रियों में ये दोष भी रचे गये हैं (अर्थात ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं)।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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| श्राद्ध के विषय में देवदूत और पितरों का संवाद
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| धर्म के विषय में इन्द्र और बृहस्पति का संवाद
| वृषोत्सर्ग आदि के विषय में देवताओं, ऋषियों और पितरों का संवाद
| विष्णु, देवगण, विश्वामित्र और ब्रह्मा आदि द्वारा धर्म के गूढ़ रहस्य का वर्णन
| अग्नि, लक्ष्मी, अंगिरा, गार्ग्य, धौम्य तथा जमदग्नि द्वारा धर्म के गूढ़ रहस्य का वर्णन
| वायु द्वारा धर्माधर्म के रहस्य का वर्णन
| लोमश द्वारा धर्म के रहस्य का वर्णन
| अरुन्धती, धर्मराज और चित्रगुप्त द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| प्रमथगणों द्वारा धर्माधर्म सम्बन्धी रहस्य का कथन
| दिग्गजों का धर्म सम्बन्धी रहस्य एवं प्रभाव
| महादेव जी का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| स्कन्ददेव का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| भगवान विष्णु और भीष्म द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्यों के माहात्म्य का वर्णन
| जिनका अन्न ग्रहण करने योग्य है और जिनका ग्रहण करने योग्य नहीं है, उन मनुष्यों का वर्णन
| दान लेने और अनुचित भोजन करने का प्रायश्चित
| दान से स्वर्गलोक में जाने वाले राजाओं का वर्णन
| पाँच प्रकार के दानों का वर्णन
| तपस्वी श्रीकृष्ण के पास ऋषियों का आना
| ऋषियों का श्रीकृष्ण का प्रभाव देखना और उनसे वार्तालाप करना
| नारद द्वारा हिमालय पर शिव की शोभा का विस्तृत वर्णन
| शिव के तीसरे नेत्र से हिमालय का भस्म होना
| शिव-पार्वती के धर्म-विषयक संवाद की उत्थापना
| वर्णाश्रम सम्बन्धी आचार
| प्रवृत्ति-निवृत्तिरूप धर्म का निरूपण
| वानप्रस्थ धर्म तथा उसके पालन की विधि और महिमा
| ब्राह्मणादि वर्णों की प्राप्ति में शुभाशुभ कर्मों की प्रधानता का वर्णन
| बन्धन मुक्ति, स्वर्ग, नरक एवं दीर्घायु और अल्पायु प्रदान करने वाले कर्मों का वर्णन
| स्वर्ग और नरक प्राप्त कराने वाले कर्मों का वर्णन
| उत्तम और अधम कुल में जन्म दिलाने वाले कर्मों का वर्णन
| मनुष्य को बुद्धिमान, मन्दबुद्धि तथा नपुंसक बनाने वाले कर्मों का वर्णन
| राजधर्म का वर्णन
| योद्धाओं के धर्म का वर्णन
| रणयज्ञ में प्राणोत्सर्ग की महिमा
| संक्षेप से राजधर्म का वर्णन
| अहिंसा और इन्द्रिय संयम की प्रशंसा
| दैव की प्रधानता
| त्रिवर्ग का निरूपण
| कल्याणकारी आचार-व्यवहार का वर्णन
| विविध प्रकार के कर्मफलों का वर्णन
| अन्धत्व और पंगुत्व आदि दोषों और रोगों के कारणभूत दुष्कर्मों का वर्णन
| उमा-महेश्वर संवाद में महत्त्वपूर्ण विषयों का विवेचन
| प्राणियों के चार भेदों का निरूपण
| पूर्वजन्म की स्मृति का रहस्य
| मरकर फिर लौटने में कारण स्वप्नदर्शन
| दैव और पुरुषार्थ तथा पुनर्जन्म का विवेचन
| यमलोक तथा वहाँ के मार्गों का वर्णन
| पापियों की नरकयातनाओं का वर्णन
| कर्मानुसार विभिन्न योनियों में पापियों के जन्म का उल्लेख
| शुभाशुभ आदि तीन प्रकार के कर्मों का स्वरूप और उनके फल का वर्णन
| मद्यसेवन के दोषों का वर्णन
| पुण्य के विधान का वर्णन
| व्रत धारण करने से शुभ फल की प्राप्ति
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| मांसभक्षण से दोष तथा मांस न खाने से लाभ
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| उपवास की विधि
| तीर्थस्थान की विधि
| सर्वसाधारण द्रव्य के दान से पुण्य
| अन्न, सुवर्ण और गौदान का माहात्म्य
| भूमिदान के महत्त्व का वर्णन
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| तिल का दान और उसके फल का माहात्म्य
| नाना प्रकार के दानों का फल
| लौकिक-वैदिक यज्ञ तथा देवताओं की पूजा का निरूपण
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| ब्राह्मणों की महिमा विषयक कार्तवीय अर्जुन और वायु देवता का संवाद
| वायु द्वारा उदाहरण सहित ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन
| ब्राह्मणशिरोमणि उतथ्य के प्रभाव का वर्णन
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| कप दानवों का स्वर्गलोक पर अधिकार
| ब्राह्मणों द्वारा कप दानवों को भस्म करना
| भीष्म द्वारा श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन
| श्रीकृष्ण का प्रद्युम्न को ब्राह्मणों की महिमा बताना
| श्रीकृष्ण द्वारा दुर्वासा के चरित्र का वर्णन करना
| श्रीकृष्ण द्वारा भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन
| भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन
| धर्म के विषय में आगम-प्रमाण की श्रेष्ठता
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| साधु-असाधु के लक्षण तथा शिष्टाचार का निरूपण
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| भीष्म का शुभाशुभ कर्मों को ही सुख-दु:ख की प्राप्ति का कारण बताना
| नित्यस्मरणीय देवता, नदी, पर्वत, ऋषि और राजाओं के नाम-कीर्तन का माहात्म्य
| भीष्म की अनुमति से युधिष्ठिर का सपरिवार हस्तिनापुर प्रस्थान
भीष्मस्वर्गारोहण पर्व
भीष्म के अन्त्येष्टि संस्कार की सामग्री लेकर युधिष्ठिर आदि का आगमन
| भीष्म का धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर को कर्तव्य का उपदेश देना
| भीष्म का श्रीकृष्ण आदि से देहत्याग की अनुमति लेना
| भीष्म का प्राणत्याग
| धृतराष्ट्र द्वारा भीष्म का दाह संस्कार
| गंगा का भीष्म के लिए शोक प्रकट करना और श्रीकृष्ण का उन्हें समझाना
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