नृत्य

बिरजू महाराज

जयमंगल के मतानुसार चौंसठ कलाओं में से यह एक कला है। यह कला नृत्य (नाचना) कला है। हाव-भाव आदि के साथ की गयी गति को नृत्य कहा जाता है। नृत्य में करण, अंगहार, विभाव, भाव, अनुभाव और रसों की अभिव्यक्ति की जाती है। नृत्य के दो प्रकार हैं-

  • एक नाट्य।
  • दूसरा अनाट्य।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

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