नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
91. राजर्षि परीक्षित-उपसंहार
मैं सम्पत्ति दे सकता था। कोई शत्रु आक्रमण करने की धृष्टता करे तो शरासन लेकर उसका शमन कर सकता था; किंतु प्रजा मैं कहाँ से पाता? पूरा व्रजमण्डल प्राणिहीन पड़ा था। मानव तो दूर, पशु-पक्षी तक का नाम नहीं। वत्स वज्रनाभ ठीक तो कहता था कि निर्जन प्रदेश के राज्य का क्या अर्थ? किसी प्रकार महर्षि शाण्डिल्य का पता लगा। वे कृपाकर पधारे भी मेरे समीप। उनके आदेश के अनुसार उनके द्वारा निर्दिष्ट स्थलों में वज्रनाभ ने श्रीहरि की लीलाओं के अनुसार भगवद-विग्रहों की, कुण्ड-कूपादि की स्थापना प्रारम्भ की। मैं इसमें साथ रहकर सहायता करने लगा। इसका एक सुफल हुआ। व्रजमण्डल में पक्षी आकर स्वयं बसने लगे। पशु हम लोग बाहर से ले आये। हमारे आमन्त्रण को व्रजवासियों के अन्यत्र स्थित सम्बन्धियों ने स्वीकार कर लिया और व्रज में बस गये। हमने यथासम्भव उन सबके लिए गृहादि सब सुविधाएँ उपलब्ध करायीं। इस प्रकार कपि तक हमें बाहर से लाने पड़े। प्रजा को बसाने का प्रबन्ध हम कर ही रहे थे कि श्रीकृष्णचन्द्र की जो रानियाँ यहाँ आ सकी थीं उन्हें देवी कालिन्दी मिल गयीं। उन सूर्य-सुता ने उनको समझाया- 'अखिलेश्वर की अंगनाएँ विधवा नहीं हुआ करतीं। वे अविनाशी पुरुष अपनाकर त्याग नहीं करते। उनका वियोग तो अज्ञान से उत्पन्न भ्रम है। व्रज में इस अज्ञान के निवारण का दायित्व उन्होंने उद्धवजी को दे रखा है। हमारे परम प्रियतम पुरुषोत्तम वृन्दावनेश्वरी श्रीराधा की कृपा से प्राप्त होते हैं। वे रासेश्वरी ही उनकी आह्लादिनी हैं और वही कृपा करें तो रसराज के अन्तःपुर में- निभृत निकुञ्ज में प्रवेश प्राप्त होता है। हम सब तो उन कीर्तिकुमारी की अंशभूता उनकी सेविकाएँ ही हैं; किंतु न जानने के कारण अपने को आप सब उन वनमाली से वियुक्त मानती हैं। यह वियोग मिटकर नित्य संयोग प्राप्त हो सकता है यदि उद्धव मिल जायँ आप सबको।' उन भानु-नन्दिनी ने ही यह भी बतला दिया कि- 'श्रीद्वारिकाधीश ने उद्धव को पहिले ही व्रजवास का वरदान दे दिया था। स्वधाम-गमन के समय उन्हें बदरिकाश्रम जाने का आदेश दिया। अतः उद्धव स्थूल शरीर से बदरिकाश्रम चले गये और भावदेह से व्रज की लता-वल्लरियों से एक होकर गिरिराज गोवर्धन के समीप रहते हैं। यह उनका नित्य स्वरूप है। प्रेम पूर्वक श्रीकृष्ण-कीर्तन किया जाय वहाँ तो वे उन लताओं से निकलकर प्रत्यक्ष आ जायँगे। वे परम प्रेमी पुरुषोत्तम के कीर्तन के समय अन्तर्हित नहीं रह सकते।' |
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