नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह चक्र पृ. 454

नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'

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73. चन्द्रावली-रास में मान भंग


हमने अत्यन्त अनुरोध करके, अपने अनन्त जनों के सौभाग्य से जो परमनिधि प्राप्त की थी, अभिमान में आकर उसे खो दिया हम हतभागिनियों ने समझा ही नहीं कि यह हमारा हृदयहारी हरि गर्वहारी है। हम जो उस शिखि-शिखण्ड को पाकर त्रिभुवन में सबसे श्रेष्ठ, सबसे महान सौभाग्यशालिनी थीं, रमा-उमा-शारदा को अपने पद-प्रान्त में बैठने योग्य भी नहीं समझती थीं, वही अब भाग्यहीना कंगालिनी हैं। अपने उस कृष्णधन को खोकर अब कहीं आश्रय नहीं हमारा। संसार हमारे लिये सायँ-सायँ करता मुख फाड़े खाने को आता कराल काल सर्प के समान हो गया है।

वह छलिया स्वप्न के समान आया था हमारे मध्य और हम उन्मादिनी हो गयीं। हम उससे रूठने लगीं। वह तो स्वप्न के समान ही अदृश्य हो गया। अब इस फूटे कपाल को पीटने-क्रन्दन करने से क्या होना है।

सब कहती हैं, सब भोली सखियाँ समझती हैं कि अपराध उनका ही है। कोई इस अधमा चञ्चला चन्द्रावली को कोसती नहीं। कोई इसे दोष नहीं देती; किंतु मैं कैसे अपने को क्षमा कर दूँ। मुझे ही तो सबसे अधिक अभिमान हो गया था। मैं ही तो बहुत बोलने वाली बन गयी थी। मैं समझने लगी थी कि मैं बोली तो मेरे वाक्यों पर, मेरे रूप पर रीझकर वे अपनी उदासीनता त्यागकर हमारे मध्य आये थे। मैं ही सबसे अधिक इतराने लगी थी। मैं ही चाहने लगी थी कि वे मेरे- केवल मेरे बनकर रहें। मैं उनके कर खींचने का दुस्साहस करने लगी थी। मैं रूठने चली थी- अरी मूर्खे, चन्द्रावली! वे कृपा करके अपना चरण स्पर्श तुझे दे देते हैं और तुझे आज श्रीराधा के समान मानिनी बनने की सूझी थी? अब मरकर भी हतभागिनी तुझे शान्ति नहीं। वे तुझे क्षमा कर दें, यह किस मुख से कहेगी उनसे?

ये सखियाँ- ये श्रीराधा की सखियाँ भी दोष देतीं, झिड़कती तो तनिक शान्ति पाती मैं; किंतु ये सब इतनी सरलाएँ हैं कि सबकी सब गले लिपटकर रोती हैं। सब कहती हैं- 'हाय सखी! मेरे अपराध से ही वे रूठ कर चले गये। मुझ भाग्यहीना के अभिमान ने तुम सबको भी वञ्चिता बना दिया। मुझे सब मिलकर मारो, शाप दो! मुझे क्यों कण्ठ से लगाती हो। मैं तुम्हारे स्पर्श के योग्य नहीं। मेरा अमंगल कलुषित शरीर मत छुओ!'

सुन! सुन चन्द्रावली! यह तेरा अपराध सब अपने-में आरोपित कर रही हैं अभागिनी। लेकिन अब ऐसे बैठे तो नहीं रहा जा सकता। वे कहाँ गये? किधर गये? उन्हें कौन बतलावेगा?

ये अश्वत्थ, वट, पाकर, कदम्ब, अर्जुन- इतना ऊँचा सिर किये खड़े हैं। ये दूर तक देख सकते हैं। ये हम अवलाओं पर कृपा क्यों नहीं करते? ये पुकारने पर भी एक पत्र तक हिलाकर संकेत करते नहीं दीखते। एक पक्षी तक उस हमारे हृदय धन की ओर नहीं उड़ाते। ये वृन्दावन के तरु जड़ तो नहीं हैं, निष्करुण भी नहीं हैं; किंतु ये तपस्वी हैं। मौनव्रती हैं। यह भी तो सम्भव है कि वह निष्ठुर इनसे भी छिप गया हो। वह झुककर इनके नीचे से निकल गया हो।

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नन्दनन्दन
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. मंगलाचरण
2. अपनी बात 1
3. प्रस्तावना 4
4. महर्षि शाण्डिल्‍य-कुल परिचय 13
5. भगवती पूर्णमासी-मधुमंगल 24
6. माता रोहिणी-दाऊ का जन्‍म 31
7. चंद्रदेव-बाबा-मैया का परिचय 40
8. भगवान भास्‍कर-श्रीराधा-जन्‍म 44
9. मैया यशोदा-सीमन्‍तन 47
10. नन्‍द बाबा-श्रीकृष्‍ण-जन्‍म 53
11. धात्री मुखरा-जन्‍मोत्‍सव 58
12. बुआ नन्दिनी-षष्‍ठी महोत्‍सव 63
13. सनकादि कुमार-पूतना-मोक्ष 69
14. तुंगी तायी-दुग्‍ध–पान 80
15. शुक्राचार्य–श्रीधर विप्र 86
16. महर्षि लोमश–शकट-भञ्‍जन 90
17. श्रीगर्गाचार्य–नामकरण 99
18. पीवरी तायी–भूम्‍युपवेश 106
19. नाना सुमुख–अन्नप्राशन 111
20. कुबला चाची–शैशव 118
21. काकभुशुण्डि–क्रीड़ा 125
22. महर्षि दुर्वासा–तृणावर्त त्राण 132
23. महर्षि मार्कण्‍डेय–वर्षगाँठ 137
24. अतुला चाची-चिर-चपल 141
25. बुआ सुनन्‍दा-मृद-भक्षण 155
26. फल-विक्रयिणी 161
27. वृषभानु बाबा-सगाई 167
28. विप्रर्षि कण्‍व 171
29. अभिनन्‍द ताऊ-सेवा-सम्‍मान 179
30. मल्लिका मौसी-सर्वप्रिय 183
31. अश्विनी कुमार-कर्ण-वेध 191
32. मधुमंगल-माखन चोरी 196
33. शारदा-उपालम्‍भ 204
34. उर्वशी-ऊखल-बन्‍धन 210
35. यमलार्जुन 220
36. चाचा सन्नन्द-दामोदर-मुक्ति 226
37. कुबेर-बाल-क्रीड़ा 231
38. दाऊ-वृक्रोपद्रव 235
39. उपनन्द ताऊ-गोकुल-त्‍याग का प्रस्‍ताव 238
40. नन्‍दन चाचा-वृन्‍दावन की ओर 243
41. विश्वकर्मा-नन्‍दगाँव 253
42. ऋषभ-नये सखा 257
43. कीर्त्ति मैया-प्रथम परिचय 261
44. माधुरी दासी-पनघट 267
45. लक्ष्‍मी-गोदोहन 274
46. साधु-सेवक-वत्‍स-चारण 280
47. तुम्बरू-वेणु-वादन 287
48. ब्रह्मर्षि वशिष्ठ-वत्सोद्धार 294
49. महर्षि जाजलि-बकोद्धार 299
50. विशाखा-परिचय 305
51. रंगदेवी-तुलसी-पूजन 309
52. देवी दुर्गा-व्‍योम-वध 315
53. यमराज-अघोद्धार 322
54. कालिन्‍दी-वन-भोजन 331
55. ब्रह्मा-विधि-व्‍यामोह 337
56. गणेश-गोचारण 348
57. सुबल-दधि-दान 357
58. विशाल-सखा समूह 364
59. गरुड़-कालिय-दमन 368
60. देवर्षि नारद-धेनुक-ध्वंस 379
61. देवगुरु बृहस्पति-प्रलम्ब-परित्राण 384
62. शनैश्चर-ढुण्ढा की होली 388
63. महर्षि अंगिरा-दावाग्नि-पान 393
64. बहिन अजया-गोवर्धन-पूजन 404
65. महर्षि पुलत्स्य-गोवर्धन-धारण 410
66. देवराज इन्द्र-गोविन्दाभिषेक 416
67. पाटली नानी-शंका-सगाई 421
68. जलाधिप वरुण-दिव्य-दर्शन 425
69. भगवती कात्यायनी-चीर-हरण 430
70. बुध-विप्र-पत्नियाँ 436
71. श्रीकृष्ण-श्रीराधा विवाह 443
72. कामदेव-रासका प्रारम्भ 447
73. चंद्रावली-रास में मान-भंग 454
74. भगवान शिव-महारास 462
75. दानवेन्द्र मय-अजगर उद्धार 466
76. राहु-शंखचूड़-वध 471
77. सुदेवी-प्रमुख सखियों का परिचय 475
78. मंगल-अरिष्ट- संहार 477
79. गायत्री-केशी-क्रंदन 481
80. ग्रामदेव-अक्रूर आये 486
81. अक्रूर-अदभुत दर्शन 492
82. विप्रपत्नी ऋतम्भरा-बाबा लौटे 495
83. ललिता-वियोग-दर्शन 499
84. भास्वरा भाभी-माँ रोहिणी मथुरा को 503
85. उद्धव 507
86. वृन्दादेवी-दाऊ आये 515
87. महाभानु बाबा-कुरुक्षेत्र से लौटे 519
88. मंगला दासी-द्वितीय ग्रहण-यात्रा 523
89. श्रीराधा 527
90. भद्रसेन 532
91. राजर्षि परीक्षित-उपसंहार 543
92. अंतिम पृष्ठ 546

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