नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
18. पीवरी तायी–भूम्युपवेश
प्राय∶ सब सहेलियाँ पितृगृह में मेरा परिहास करती थीं और अब गोकुल में गोपियाँ करती हैं। मुझे बुरा नहीं लगता। क्रोध कोई भला क्यों करता है? हँसना-हँसाना और आनन्दमग्न रहना! मुख लटकाकर बैठना मुझे कभी नहीं आया। दूसरी भी कोई रूठकर बैठती है तो मुझे हँसी आती है। आज तो आनन्द मनाने, गाने-बजाने का विशेष दिन है। क्या हुआ जो मैं ऋषि-मुनियों के समान बहुत अँधेरे नहीं उठा करती। आज मैं देर तक सोती न रहूँ इस चिन्ता में पता नहीं मुझे निद्रा भी आयी या नहीं। आज हमारा नन्हा युवराज सूर्य-दर्शन करेगा। महर्षि शाण्डिल्य ने मुहूर्त-निश्चय करने में बुद्धिमानी की है। कई बार ये ऋषि-मुनि अपने विधि-विधान में ऐसे पड़ते हैं कि हम गृहस्थों की सुविधा- हमारे भाव समझने का तनिक भी कष्ट नहीं करते। सुकुमार नन्दनन्दन अब चार मास का हो रहा है। वह कब-तक कक्ष में रहेगा; किंतु पिछले महीने उसके भास्कर-दर्शन की चर्चा चली तो मैंने विरोध किया था। अब अनुकूल समय आया है। देवर नन्दन कहते थे- शिशु के सर्वांग पर सूर्य-रश्मि पड़नी चाहिए और उदित होते सूर्य का दर्शन तो लोग अशुभ मानते हैं। यह हेमन्त का प्रारम्भ महर्षि ने उपयुक्त मुहूर्त माना है। अब शीत के कारण सूर्य विषम-रश्मि नहीं रहा। मैं कल सायंकाल ही देख आयी थी कि गोकुल का पूरा पथ मेरे ज्येष्ठ अरुण-वितानों से आच्छादित करवा रहे हैं। सेवकों तक को आज के लिए पावक-वर्णी परिधान दे दिया गया है। मैं जब कभी लाल लहँगा और चूँदरी पहिनती हूँ, स्वामी कहते हैं- 'तुम तो बुढ़ापे में भी बीरबहूटी लगती हो!' किंतु आज तो इस अरुण रंग का ही अवसर है। सभी आज इसी वर्ण को अपनावेंगी। आज के लिए ही तो मैंने माणिक्यमण्डित कंकण और कण्ठाभरण बनवाये थे। आज का रविवार आदित्याराधना दिवस है। मैंने कल ही भगवती पूर्णमासी से सुन लिया है कि आज सब लवण-रहित आहार करेंगी। मैं तो वैसे भी मधुर रस ही रस मानती हूँ। भवन के सम्मुख का पथ मैंने बहुत प्रात∶ कुंकुम के पुष्प बनाकर अलंकृत कर दिया है। द्वार पर करवीर-पुष्पों की वन्दनवार लगा दी है। |
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