धनुष अस्त्र

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धनुष, बाण और तुणीक

धनुष अस्त्र का उपयोग काफ़ी प्राचीन समय से होता रहा है। यह बाण चलाने के लिये प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग रामायण काल तथा महाभारत काल के युद्धों में भी किया जाता था।

  • 'धनुष' बाण चलाने का यन्त्र (कमान) होता था, जो प्रायः मनुष्य के बराबर लम्बा होता था।
  • इसके एक सिरे पर नस की अथवा मूर्वा घास की बनी डोरी (ज्या) बँधी होती थी। बाण चलाने के लिए धनुष को झुकाकर दूसरे सिरे पर ज्या चढ़ाई जाती थी। बाण ज्या पर रखकर उसके साथ ज़ोर से खींचकर छोड़ा जाता था।
  • धनुष धन्वन् की लकड़ी का बना होता था। सींग के बने धनुष को शार्ङ्ग[1], ताल के बने को 'कार्मुक' और बाँस के बने को 'चाप' कहते थे। पीछे से धनुष सब का बोधक माना जाने लगा।[2]
  • युद्ध-विद्या में प्राचीन काल में धनुष का इतना महत्त्व था कि सारी युद्ध-विद्या धनुर्वेद के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
  • प्राचीन समय में देवी-देवता भी धनुष का प्रयोग करते थे।
  • मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का मुख्य अस्त्र धनुष था। महाभारत में द्रोणाचार्य के शिष्य अर्जुन सबसे अच्छे धनुष चलाने वाले थे।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विष्णु का धनुष सींग का ही था।
  2. महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारतकोश डिस्कवरी पुस्तकालय |संपादन: संजीव प्रसाद 'परमहंस' |पृष्ठ संख्या: 130 |

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