दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना

महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत दूसरे अध्याय में संजय ने शल्य और दुर्योधन वध के समाचार को सुनकर धृतराष्ट्र के मूर्च्छित होने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र का दुर्योधन के वध पर विलाप करना

वैशम्पायन जी कहते हैं- महाराज! स्त्रियों के विदा हो जाने पर अम्बिकानन्दन राजा धृतराष्ट्र एक दुःख से दूसरे दुःख में पड़कर गरम-गरम उच्छ्वास लेते और बारंबार दोनों हाथ हिलाते हुए विलाप करने लगे। और बड़ी देर तक चिंता मग्न रहकर इस प्रकार बोले- धृतराष्ट्र ने कहा- सूत! मेरे लिये महान दुःख की बात है कि में तुम्हारे मुख से रणभूमि में पाण्डवों को सकुशल और विनाशरहित सुन रहा हूँ। निश्चय ही मेरा यह सुदृढ़ हृदय वज्र के सारतत्त्व का बना हुआ है; क्योंकि अपने पुत्रों को मारा गया सुनकर भी इसके सहस्रों टुकडे़ नहीं हो जाते हैं। संजय! में उनकी अवस्था और बाल-क्रीड़ा का चिन्तन करके जब उन सब के मारे जाने की बात सोचता हूँ, तब मेरा हृदय अत्यन्त विदीर्ण होने लगता है। यद्यपि नेत्रहीन होने के कारण मैंने उनका रूप कभी नहीं देखा था, तथापि इन सबके प्रति पुत्रस्नेह जनित प्रेम का भाव सदा ही रखा है। निष्पाप संजय! जब में यह सुनता था कि मेरे बच्चे बाल्यावस्था को लाँघकर युवावस्था में प्रविष्ट हुए हैं और धीरे-धीरे मध्य अवस्था तक पहुँच हैं, तब हर्ष से फूल उठता था। आज उन्हीं पुत्रों को ऐश्वर्य और बल से हीन एवं मारा गया सुनकर उनकी चिन्ता से व्यथित हो कहीं भी शांति नहीं पा रहा हूँ। (इतना कहकर राजा धृतराष्ट्र इस प्रकार विलाप करने लगे-) बेटा! राजाधिराज! इस समय मुझ अनाथ के पास आओ, आओ। महाबाहो! तुम्हारे बिना न जाने में किस दशा को पहुँच जाऊँगा? तात! तुम यहाँ पधारे हुए समस्त भूमिपालों को छोड़कर किसी नीच और दुष्ट राजा के समान मारे जाकर पृथ्वी पर कैसे सो रहे हो? वीर महाराज! तुम भाई-बन्धुओं और सुहृदों के आश्रय होकर किसी मुझ अंधे और बुढे़ को छोड़कर कहाँ चले आ रहे हो?

राजन! तुम्हारी वह कृपा, वह प्रीति और दूसरों को सम्मान देने की वह वृत्ति कहाँ चली गयी; तुम तो किसी से परास्त होने वाले नही थे; फिर कुन्ती के पुत्रों के द्वारा युद्ध में कैसे मारे गये? वीर! अब मेरे उठने पर मुझे सदा तात, महाराज और लोकनाथ आदि बारंबार कहकर कौन पुकारेगा? कुरुनन्दन! तुम पहले स्नेह से नेत्रों में आँसू भरकर मेरे गले से लग जाते और कहते पिता जी! मुझे कर्तव्य का उपदेश दीजिए, वही सुन्दर बात फिर मुझसे कहो। बेटा! मैंने तुम्हारे मुँह से यह बात सुनी थी कि मेरे अधिकार में बहुत बड़ी पृथ्वी है। इतना विशाल भू-भाग कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर के अधिकार में कभी नहीं रहा। नृपश्रेष्ठ! भगदत्त, कृपाचार्य, शल्य, अवन्ती के राजकुमार, जयद्रथ, भूरिश्रवा, सोमदत्त, महाराज बाह्लिक, अश्वत्थामा, कृतवर्मा, महाबली मगधनरेश बृहद्बल, क्राथ, सुबलपुत्र शकुनि, लाखों म्लेच्छ, यवन एवं शक, काम्बोजराज, सुदक्षिण, त्रिगर्तराज सुशर्मा, पितामह भीष्म, भरद्वाजनन्दन द्रोणाचार्य, गौतमगोत्रीय कृपाचार्य, श्रुतायु, अयुतायु, पराक्रमी शतायु, जलसन्ध, ऋष्यशृंगपुत्र राक्षस अलायुध, महाबाहु अलम्बुष और महारथी सुबाहु- ये तथा और भी बहुत से नरेश मेरे लिये प्राणों और घन का मोह छोड़कर सब-के-सब युद्ध के लिये उद्यत हैं। इन सबके बीच में रहकर भाईयों से घिरा हुआ में रणभूमि में पाण्डवों और पांचालों के साथ युद्ध करूँगा।[1]

राजसिंह! मैं युद्धस्थल में चेदियों, द्रौपदीकुमारों, सात्यकि, कुन्तिभोज तथा राक्षस घटोत्कच का भी सामना करूँगा। महाराज! मेरे इन सहयोगियों में से एक-एक वीर भी समरांगण में कुपित होकर मुझ पर आक्रमण करने वाले समस्त पाण्डवों को राकने में समर्थ हैं। फिर यदि पाण्डवों के साथ वैर रखने वाले ये सारे वीर एक साथ होकर युद्ध करें तब क्या नहीं कर सकते। राजेन्द्र! अथवा ये सभी योद्धा पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर के अनुयायियों के साथ युद्ध करेंगे और उन सबको रणभूमि में मार गिरायेंगे। अकेला कर्ण ही मेरे साथ रहकर समस्त पाण्डवों को मार डालेगा। फिर सारे वीर नरेश मेरी आज्ञा के अधीन हो जायँगे। राजन! पाण्डवों के जो नेता हैं, वे महाबली वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण युद्ध के लिये कवच नहीं धारण करेंगे। ऐसी बात दुर्योधन मुझसे कहता था। सूत! मेरे निकट दुर्योधन जब इस तरह की बहुत-सी बातें कहने लगा तो में यह समझ बैठा कि हमारी शक्ति से समस्त पाण्डव रणभूमि में मारे जायँगे। जब ऐसे वीरों के बीच में रहकर भी प्रयत्नपूर्वक लड़ने वाले मेरे पुत्र समरांगण में मार डाले गये, जब इसे भाग्य के सिवा और क्या कहा जा सकता है ? जैसे सिंह सियार से लड़कर मारा जाय, उसी प्रकार जहाँ लोकरक्षक प्रतापी वीर भीष्म शिखण्डी से भिड़कर वध को प्राप्त हुए, जहाँ सम्पूर्ण शस्त्रास्त्रों की विद्या के पारंगत विद्वान ब्राह्मण द्रोणाचार्य पांडवों द्वारा युद्धस्थल में मार डाले गये, वहाँ भाग्य के सिवा दूसरा क्या कारण बताया जा सकता है? जहाँ दिव्यास्त्रों का ज्ञान रखने वाला महारथी कर्ण युद्ध में मारा गया, जहाँ समरांगण में भूरिश्रवा, सोमदत्त तथा महाराज बाह्लिक का संहार हो गया, वहाँ भाग्य के सिवा दूसरा क्या कारण हो सकता है? जहाँ गजयुद्धविशारद राजा भगदत्त मारे गये और सिंधुराज जयद्रथ का वध हो गया, जहाँ काम्बोजराज सुदक्षिण, पौरव जलसन्ध, श्रुतायु और अयुतायु मार डाले गये, वहाँ भाग्य के सिवा और क्या कारण हो सकता है?

जहाँ सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ महाबली पाण्डयनरेश युद्ध में पाण्डवों के हाथ से मारे गये, वहाँ भाग्य के सिवा और क्या कारण है? जहाँ बृहद्बल, महाबली मगधनरेश, धनुर्धरों के आर्दश एवं पराक्रमी अग्रायुध, अवन्ती के राजकुमार, त्रिगर्तनरेश सुशर्मा तथा सम्पूर्ण संशप्तक योद्धा मार डाले गये, वहाँ भाग्य के सिवा दूसरा क्या कारण हो सकता है? जहाँ शूरवीर अलम्बुष और ऋष्यशृंगपुत्र राक्षस अलायुध मारे गये, वहाँ भाग्य के सिवा और क्या कारण बताया जा सकता है? जहाँ नारायण नाम वाले रणदुर्मद ग्वाले और कई हजार म्लेच्छ योद्धा मौत के घाट उतार दिये गये, वहाँ भाग्य के सिवा और क्या कहा जा सकता है? जहाँ सुबलपुत्र महाबली शकुनि और उस जुआरी पुत्र वीर उलूक दोनों ही सेना सहित मार डाले गये, वहाँ भाग्य के सिवा दूसरा क्या कारण हो सकता है? ये तथा और भी बहुत से अस्त्रवेत्ता, रणदुर्भद, शूरवीर और परिघ-जैसी भुजाओं वाले राजा एवं राजकुमार अधिक संख्या में मार डाले गये, वहाँ भाग्य के सिवा और क्या कारण बताया जाय? सूत संजय! जहाँ समरभूमि में नाना देशों से आये हुए देवराज इन्द्र के समान पराक्रमी बहुत-से शूरवीर महाधनुर्धर, अस्त्रवेत्ता एवं युद्धदुर्मद क्षत्रिय सारे-के-सारे मार डाले गये, वहाँ भाग्य के अतिरिक्त दूसरा क्या कारण हो सकता है? निश्चय ही मनुष्य अपना-अपना भाग्य लेकर उत्पन्न होता है, जो सौभाग्य से सम्पन्न होता है, उसे ही शुभ फल की प्राप्ति होती है।[2]

संजय! मैं उन शुभकारक भाग्यों से वंचित हूँ और पुत्रों से भी हीन हूँ। आज इस वृद्धावस्था में शत्रु के वश में पड़कर न जाने मेरी कैसी दशा होगी? सामर्थ्‍यशाली संजय! मेरे लिये वनवास के सिवा और कोई कार्य श्रेष्ठ नहीं जान पड़ता। अब कुटुम्बीजनों का विनाश हो जाने पर बन्धु-बान्धवों से रहित हो मैं वन में ही चला जाऊँगा। संजय! पंख कटे हुए पक्षी की भाँति इस अवस्था को पहुँच हुए मेरे लिये वनवास स्वीकार करने के सिवा दूसरा कोई श्रेयस्कर कार्य नहीं है। जब दुर्योधन मारा गया, शल्य का युद्ध में संहार हो गया तथा दुःशासन, विविंशति और महाबली विकर्ण भी मार डाले गये, तब मैं उस भीमसेन का उच्च स्वर से कहा गया वचन कैसे सुनूँगा, जिसने अकेले ही समरांगण में मेरे सौ पुत्रों का वध का डाला। दुर्योधन के वध से दुःख और शोक से संतप्त हुआ में बारंबार बोलने वाले भीमसेन की कठोर बातें नहीं सुन सकूँगा। वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! इस प्रकार पुत्रों एवं की चिन्ता में डूबकर बारंबार मूर्च्छित होने वाले, संतप्त एवं बूढे़ भरतश्रेष्ठ राजा अम्बिकानन्दन धृतराष्ट्र, जिनके बन्धु-बान्धव मार डाले गये थे, दीर्घकाल तक विलाप करके गरम साँस खींचते और अपने पराभव की बात सोचते हुए महान दुःख से संतप्त हो उठे तथा गवल्गणपुत्र संजय से पुनः का यथावत समाचार पूछने लगे।[3]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 2 श्लोक 1-22
  2. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 2 श्लोक 23-46
  3. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 2 श्लोक 47-63

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शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना | धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना | दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना | धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना | कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध | अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण | दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना | कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना | दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना | अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव | दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना | शल्य के वीरोचित उद्गार | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना | उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना | कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन | नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध | शल्य का पराक्रम | कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध | भीम के द्वारा शल्य की पराजय | भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध | दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध | दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध | युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध | मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध | अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध | दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध | शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध | पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध | भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय | भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध | सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय | मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन | पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा | भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार | दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना | धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध | सात्यकि द्वारा शाल्व का वध | सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय | दुर्योधन का पराक्रम | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम | कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध | उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम | शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय | अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा | अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार | अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार | अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज | सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध | अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध | भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त | सहदेव के द्वारा उलूक का वध | सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
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