तुण्डिकेर नामक पात्र का उल्लेख पौराणिक महाकाव्य महाभारत में मिलता है। महाभारत के अनुसार यह कौरव-पक्षीय योद्धा था। महाभारत के युद्ध में यह अर्जुन के द्वारा मारा गया।
- महाभारत कर्ण पर्व[1] में संजय, धृतराष्ट्र से कहते हैं कि- घटोत्कच ने पराक्रम करके गर्दभ युक्त सुन्दर रथ वाले राक्षसराज अलम्बुष को यमलोक पहुँचा दिया है। सूतपुत्र राधानन्दन कर्ण, उसके महारथी भाई तथा समस्त केकय भी सव्यसाची अर्जुन के हाथ से मारे गये। मालव, मद्रक, भयकर कर्म करने वाले द्राविड़, यौधेय, ललित्थ, क्षुद्रक, उशीनर, मावेल्लक, तुण्डिकेर, सावित्री पुत्र, प्राच्य, प्रतीच्य, उछीच्य और दक्षिणात्य, पैदल समूह, दस लाख घोड़े, रथों के समूह और बड़े-बड़े गजराज अर्जुन के हाथ से मारे गये हैं।[2]
- महाभारत द्रोण पर्व[3] में संजय कहते हैं- सुशर्मा के साथ तुण्डिकेर तथा अन्य संशप्तकगण प्रतिज्ञा करते हैं कि 'आज हम आपके सामने यह सत्य प्रतिज्ञापूर्वक कहते हैं कि यह भूमि या तो अर्जुन से सूनी हो जायेगी या त्रिगर्तों में से कोई इस भूतल पर नहीं रहेगा। मेरा यह कथन कभी मिथ्या नहीं होगा।' भरतनन्दन! सुशर्मा के ऐसा कहने पर सत्यरथ, सत्यवर्मा, सत्यव्रत, सत्येषु तथा सत्यकर्मा नाम वाले उसके पाँच भाइयों ने भी इसी प्रतिज्ञा को दुहराया। उनके साथ दस हजार रथियों की सेना भी थी। ये लोग युद्ध के लिये शपथ खाकर लौटे थे। ऐसी प्रतिज्ञा करके प्रस्थलाधिपति पुरुषसिंह त्रिगर्तराज सुशर्मा तीस हजार रथियों सहित मालव, तुण्डिकेर, मावेल्लक, ललित्थ , मद्रकगण तथा दस हजार रथियों से युक्त अपने भाइयों के साथ युद्ध के लिये[4] गया।[5]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पंचम अध्याय
- ↑ महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 5 श्लोक 45-60
- ↑ सप्तदश अध्याय
- ↑ शपथ ग्रहण करने को
- ↑ महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 17 श्लोक 1-20