तातै तरकि कह्यौ बनमाली।
पसु तन चपल सरूप न जानतिं डोलति चाली चाली।।
धरि तन सगुन त्रिपद पूरन प्रभु आपु कमल प्रतिपाली
जद्यपि वृषभ सुता पति तजि कै फिरति कुमति की घाली।।
अति स्रम भयो सकल बन ढूँढत बन बेली दव जाली।
'सूरदास' संतनि जन हरिहित इहि अब सब तै टाली।। 29।।