तातै जानि भजे बनवारी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री



            
तातैं जानि भजे बनवारी। सरनायत को ताप निवारी।
जन प्रहलाद-प्रतिज्ञा पारी। हिरनकसिपु की देह बिदारी।
ध्रुवहिं अभै पद दियौ मुरारी। अंबरीष की दुर्गति टारी।
द्रुपद-सुता जब प्रगट पुकारी। गहत चीर हरि-नाम उबारी।
गज, गनिका, गौतम-तिय तारी। सूरदास सठ, सरन तुम्‍हारी।।28।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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