तहँइ जाहु जहँ रैनि हुते।
काह दुराव करत मनमोहन, मिटे चिह्न नहि अंग जुते।।
बिनही गुन उर हार विराजत, परम चतुर हिय लाइ सुते।
बिथुरी अलक, अटपटे भूषन, काम कुटिल कुच बिच जु गुते।।
दसनदाग, नखरेख बनी है, भामिनि भवन भलैं भुगुते।
'सूर' सुदेस अधर मधु फीके, लोचन अलस उनीद उते।।2504।।