तरु तमाम गोपाल लाल बने, माल ग्रीव धर हृदय बिसाल।
गोधन सँग बालक लिए कबहुँक, बिहरत संग सखा सब ग्वाल।।
धन्य-धन्य ब्रज कौ यह नायक, कीन्हौ महरि पोष प्रतिपाल।
कबहुँक बन हरि रहै जाइकै गोरस दान लेत ततकाल।।
पैठि पताल नाथि काली कौं फन-फन पर निरतत दै ताल।
भूषन मुकुट जराइ जरयौ, मन सूर स्याम सँग बनिता-जाल।।1050।।