तब रिस कियौ महावत भारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ



तब रिस कियौ महावत भारि।
जौ नहिं आज मारिहौ इनकौ, कस डारिहै मारि।।
आँकुस राखि कुंभ पर करप्यौ, हलधर उठे हँकारि।
धायौ पवनहुँ तै अति आतुर, धरनी ढत खंभारि।।
तब हरि पूँछ गह्यौ दच्छिन कर, कँबुक फेरि सिर वारि।
पटक्यौ भूमि, फेरि नहिं मटक्यौ, लीन्हौ दत उपारि।।
दुहुँ कर दुरद दसन इक इक छवि सो निरखतिं पुरनारि।
'सूरदास' प्रभु सुर सुखदायक, मारयौ नाग पछारि।।3058।।

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