तब नागरी कहति सखियनि सौ एते पर ए सौह करै!
दरसन प्रात देत है हमकौ, निसि औरनि के चित्त हरें।
तुमही देखि लेहु अँग बानक, एते पर क्यौ सही परे।।
कृपा करै अनतही सिधारै, सो आगै तै अब जु टरें।
यह छवि देखि सनाथ भई, मैं अब ताही पर जाइ ढरे।।
'सूर' स्याम रिस देखि चले डरि, कहौ सखी अब ह्याँ न फिरें।।2562।।