तब तैं बांधे ऊखल आनि।
बालमुकुंदहिं कत तरसावति, अति कोमल अँग जानि।
प्रातकाल तै बाँधे मोहन, तरनि चढ़यौ मधि आनि।
कुम्हिलानौ मुख चंद दिखावति, देखौ धौं नंदरानि।
तेरैं त्रास तैं काउ न छोरत, अब छोरौ तुम आनि।
कमलनैन बांधेहो छाँड़े, तू बैठी मनमानि।
जसुमति के मन के सुख-कारण आपु बँधावत पानि।
जमलार्जुन कौं मुक्त करन हित, सूर स्याम जिय ठानि।।365।।