तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग।
जिनकै संग कुमति उपजति है, परत भजन मैं भंग।
कहा होत पय-पान कराऐं, बिष नहिं तजत भुजंग।
कागहिं कहा कपूर चुनाऐं, स्वान न्हवाऐं गंग।
खर कौं कहा अरगजा-लेपन, मरकट भूषन-अंग।
गज कौं कहा सरित अन्हवाऐं, बहुरि धरै वह ढंग।
पाहन पतित बान नहिं बेधत, रीतौ करत निषंग।
सूरदास कारी कामरि पै, चढ़त न दूजौ रंग।।332।।