ढाढी तै पढि नंद रिझायौ।
जसुमतिसुत की कीरति गाई सबहिनि कै मन भायौ।।
नंद सुबागौ अपनै गर कौ ढाढी कौ पहिरायौ।
दीने धेनु धौरहर घोरे अरु भडार खुलायौ।।
ढाढ़िन कौ सोने कौ नूपुर गहनौ अगढ़ गढ़ायौ।
रतनजटित खँगवारौ गर कौ जसुमति लै पहिरायौ।।
तेरै भले भलौ या ब्रज कौ या घर मंगल आयौ।
'सूरदास' कौ सरबस दीनौ मंगल सुजस सुनायौ।। 8 ।।