ठाढ़े देखत हैं ब्रजवासी।
कर जोरे अहि-नारि बिनय करि कहति, धन्य अबिनासी।
जे पद-कमल रमा उर राखित, परसि सुरसरी आई।
जे पद-कमल संभु की संपति, फन-प्रति धरे कन्हाई।
जे पद परसि सिला उद्धरि गई, पांडव गृह फिरि आए।
जे पद-कमल-भजन महिमा तैं, जन प्रहलाद बचाए।
जे पद ब्रज-जुवतिनि सुखदायक, तिहूँ भुवन धरे बावन।
सूर स्याम ते पद फन-फन-प्रति, निरतत अहि कियौ पावन।।568।।