ठाढ़ी हो ब्रज खोरी ढोटा कौन कौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


ठाढ़ी हो ब्रज खोरी ढोटा कौन कौ।
(लटिहिं) लकुट त्रिभंगी एक पद (री) मानौ मन्मथ गौन कौ।।
मोर मुकुट कछनी कसे (री) पीतांबर कटि सोभ।
नैन चलावै फेरि कै (री) निरखि होत मन लोभ।।
भौह मरोरै मटकि कै (री) रोकत जमुना घाट।
चितै मद मुसुकाइ कै (री) जिय करि लेइ उचाट।।
हँसत दसन चमकाइ कै (री) चकचौंधी सी होति।
बग पंगति नव जलद मै (री) उर माला गजमोति।।
पिचकारी रतननि जरित (री) तकि तकि छिरकत अंग।
टेसू कुसुम निचोइ कै (री) अस केसरि कौ रंग।।
फेट गुलाल भराइ कै (री) डारत नैननि ताकि।
एते पर मन हरत है (री) कहा कहौ गति बाकि।।
पुनि हा हा करि मिलत है (री) नाना रंग बनाइ।
नंदसुवन के रूप पर (री) 'सूरदास' बलि जाइ।।2874।।

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