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पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा माधव लीला माधुरी
राग जंगला - ताल कहरवा
झूर रहे दृग रूप-दरस कौं, रोय रहे अँग परसन अंग। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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राग जंगला - ताल कहरवा
झूर रहे दृग रूप-दरस कौं, रोय रहे अँग परसन अंग। |