ज्यौं भयौ परसुराम अवतार। कहौं सो कथा, सुनौ चित धार।
सहसबाहु रविवंसी भयौ। सरिता-तट इक दिन सो गयौ।
निजभुज-बल तिन सरिता गही। बढ़ि गयौ जल, तब रावन कही।
नृप तुम हमसौ करौ लराइ। कह्मौ, करौ मध्यान बिताइ।
बहुरौ क्रोधवंत जुध चह्यौ। सहसबाहु तब ताकौ गह्यौ।
बिहुरौ नृप करिकै मध्यान। दीनो ताकौ छाँडि़ निदान।
फिर नृप जमदग्न्यास्रम आयौ। कामधेनु बल करिकै धायौ।
परसुराम जब यह सुधि पाई मारयौ ताहि तुरतहीं धाई।
तासु सुनत जमदग्निहि मारयौ। परसुराम रेनुका हँकारयौ।
मारे छत्री इकइस बार। यौं भयौ परसुराम अवतार।
सुक नृप सौं ज्यौं कहि समुझायौ। सूरदास त्यौंही कहि गायौ।।13।।