(229) जो पै नंद-सुवन ब्रज होते । तौ पै नृप पावस! सुनि बिनती, कहत न डरतीं तोते ।। अब हम अबला जानि स्याम बिनु, हय, गय, रथ बर जोते । हम पर गरजि-गरजि घन पठवत, मदन मनावत पोते ।। जो पै गोकुल कर लागत है, लेत न सकल सबोते । सूरदास-प्रभु सैल-धरन बिनु, कहा सिराइ अब मोतैं ।।
(सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) हे वर्षा के राजा (इन्द्र)! हमारी प्रार्थना सुन। यदि श्रीनन्दनन्दन व्रज में होते तो तुमसे कुछ कहते (प्रार्थना करते) हम डरतीं नहीं। तुमने श्यामसुन्दर से रहित हमें अबला समझकर (ये) अच्छे घोड़े, हाथी और रथ जोतकर हम पर चढ़ाई कर दी। हम पर बार-बार गर्जना करके मेघ भेजते हो और स्वयं (हम पर आक्रमण करने के लिये) कामदेव से प्रार्थना करते हो। यदि गोकुल पर तुम्हारा कुछ कर (लगान) लगता है तो सब-का-सब (एक समय ही) क्यों नहीं चुका लेते। श्रीगिरिधर के बिना अब मुझसे क्या हो सकता है।