विरह-पदावली -सूरदास
(89) (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी!) सब लोग बातों से हमारे मन को समझाते हैं; किंतु जिस विधि से वे माधव मिलें वह विधि (रास्ता) कोई नहीं बतलाता। यद्यपि हम स्त्रियाँ अनेक उपाय सोच-सोचकर थक जाती हैं तथा मन को अनेक कामों में लगाकर बहलाती हैं; फिर भी हमारे हठी नेत्रों को दूसरे का देखना अच्छा नहीं लगता। रात-दिन प्राणवल्लभ (श्यामसुन्दर) को छोड़कर हमारी जीभ किसी दूसरे का गुणगान नहीं करती। अस्तु, स्वामी के प्रेम में लगने पर (हमें) जिससे जो कहा जाय, (वह) कह ले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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