हरि हरि- हरि हरि, सुमिरन करौ। हरि-चरनारविंद उर धरौ।
जय अरु विजय पारषद होइ। विप्र-सराप असुर भए सोइ।
एक बराह रूप धरि मारयौ। इक नरसिह-रूप संहारयौ।
रावन कुंभकरन सोइ भए। राम जनम तिनकैं हित लए।
दसरथ नृपति अजोध्या-राव। ताकैं गृढ़ कियौ आविर्भाव।
नृप सौं ज्यौं सुकदेव सुनायौ। सूरदास त्यौंही कहि गायौ।।15।।