श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी173. श्रीमती विष्णुप्रिया देवी
यह विश्व महामाया शक्ति के ही अवलम्ब से अवस्थित है। शक्तिहीन संसार की कल्पना ही नहीं हो सकती। सर्वशक्तिमान शिव भी शक्ति के बिना शव बने पड़़े रहते हैं। जब उनके अचेतन शव में शक्ति देवी का संचार होता है, तभी वे शव से शिव बन जाते हैं। शक्ति प्रच्छन्न रहती है और शक्तिमान प्रकट होकर प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है। यथार्थ में तो उस शक्ति की ही साधना कठोर है। वनवासी वीतरागी विरक्त तपस्वियों की अपेक्षा छिपकर साधना करने वाली सती-साध्वी, शक्तिरूपिणी देवी की तपस्या को मैं अधिक श्रेष्ठ मानता हूँ। हृदय पर हाथ रखकर उस सती की तपश्चर्या की कल्पना तो कीजिये, जो संसार में रहकर भी संसार से एकदम पृथक रहती है। उसका सम्पूर्ण संसार पति की मनोहर मूर्ति में ही सन्निहित हो जाता है। उसकी सभी इन्द्रियों के व्यापार, चित्त और मन की क्रियाएं एकमात्र पति के ही लिये होती हैं। पति के रूप का चिन्तन ही उसके मन का आहार बन जाता है। अहा ! कितनी ऊँची स्थिति होती होगी, क्या कोई शरीर को सुखाकर ही अपने को कृतकृत्य समझने वाला तपस्वी इस भयंकर तपस्या का अनुमान लगा सकता है? भगवान बुद्धदेव के राज्य-त्याग की सभी प्रशंसा करते हैं, किन्तु उस साध्वी गोपा का कोई नाम भी नहीं जानता जो अपने पांच वर्ष के पुत्र राहुल को संन्यासी बनाकर स्वयं भी राजमहल का परित्याग करके अपने पति भगवान बुद्धदेव के साथ भिक्षुणी वेष में द्वार-द्वार भिक्षा माँगती रही। परमहंस रामकृष्णदेव के वैराग्य की बात सभी पर विदित है, किन्तु उस भोली बाला शारदादेवी का नाम बहुत कम लोग जानते हैं जो पांच वर्ष की अबोध बालिका की दशा में अपने पितृगृह को परित्याग करके अपने पगले पति के घर में आकर रहने लगी। परमहंसदेव ने जब प्रेम के पागलपन में संन्यास लिया था, तब वह जगन्माता पूर्ण युवती थी। अपने पति के पागलपन की बातें सुनकर वह लोकलाज की कुछ भी परवा न करके अपने संन्यासी स्वामी के साथ रहने लगी। कल्पना तो कीजिये। युवावस्था, रूपलावण्ययुक्त परम रूपवान पुरुष की सेवा, सो भी एकान्त में और वह भी पादसेवा का गुरुतर कार्य। परम आश्चर्य की बात तो यह है कि वह पुरुष भी परपुरुष नहीं अपना सगा स्वामी ही है जिस पर भी किसी प्रकार का विकार मन में न आना। ‘कामश्चाष्टगुण: स्मृत:।’[2] कहने वाले वे कवि कल्पना करें कि क्या ऐसी घोर तपस्या पंचाग्नि तापने और शीत में सैकड़ों वर्षों तक जल में खड़े रहने वाली तपस्या से कुछ कम है? अहा ! ऐसी सती-साध्वी देवियों के चरणों में हम कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नवद्वीप में निवास करने वाली श्रीगौरांग देवी की शक्ति महामाया-स्वरूपिणी सती-साध्वी श्रीविष्णुप्रियादेवी को मैं प्रणाम करता हूँ। प्र. द. ब्र.
- ↑ स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा आठगुना कामोद्वेग बताया जाता है।