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श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी
152. गोपीनाथ पट्टनायक सूली से बचे
अकाम: सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधी:।
तीव्रेण भक्ति योगेन यजेत पुरुषं परम्॥[1]
पाठकवृन्द राय रामानन्द जी के पिता राजा भवानन्द जी को तो भूले ही न होंगे। उनके राय रामानन्द, गोपीनाथ पट्टनायक और वाणीनाथ आदि पाँच पुत्र थे, जिन्हें प्रभु पाँच पाण्डवों की उपमा दिया करते थे और भवानन्द जी का पाण्डु कहकर सम्मान और सत्कार किया करते थे। वाणीनाथ तो सदा प्रभु की सेवा में रहते थे। राय रामानन्द पहले विद्यानगर के शासक थे, पीछे से उस काम को छोड़कर वे सदा पुरी में ही प्रभु के पादपद्मों के सन्निकट निवास किया करते थे और महाप्रभु को निरन्तर श्रीकृष्ण-कथा-श्रवण कराते रहते। उनके छोटे भाई गोपीनाथ पट्टनायक ‘माल जाठ्या दण्डपाट’ नामक उड़ीसा राज्यान्तर्गत एक प्रान्त के शासक थे। ये बडत्रे शौकीन थे, इनका रहन सहन, ठाट बाट, सब राजसी ढंग का ही था। धन पारक जिस प्रकार प्रायः लोग विषयी बन जाते हैं, उसी प्रकार के ये विषयी बने हुए थे। विषयी लोगों की इच्छा सर्वभुक अग्नि के समान होती है, उसमें धनरूपी ईंधन कितना भी क्यों न डाल दिया जाय उसकरी तृप्ति नहीं होती। तभी तो विषयी पुरुषों को शास्त्रकारों ने अविश्वासी कहा है। विषयी लोगों के वचनों का कभी विश्वास न करना चाहिये। उनके पास कोई धरोहर की चीज रखकर फिर उसे प्राप्त करने की आशा व्यर्थ है। विषय होता ही तब है जब हृदय में अविवेक होता है और अविवेक में अपने-पराये या हानि-लाभ का ध्यान नहीं रहता। इसलिये विषयी पुरुष अपने को तो आपत्ति के जाल में फंसाता ही है, साथ ही अपने संसर्गियों को भी सदा क्लेश पहुँचाता रहता है। विषयियों का संसर्ग होने से किसे क्लेश नहीं हुआ है। इसीलिये नीतिकारों ने कहा है-
दुर्वतसंगातिरनर्थपरम्पाराया
हेतू: सतां भावति किं वचनीयमत्र।
लंकेश्वरो हरति दाशरथे: कलत्रं
प्राप्नोति बंधनमसौ किल सिंधुराज:॥
‘इसमें विशेष कहने सुनने की बात ही क्या है ? यह तो सनातन की रीति चली आयी है कि विषयी पुरुषों से संसर्ग रचाने से अच्छे पुरुषों को भी क्लेश होता ही है। देखो, उस विषयी रावण ने तो जनकनन्दिनी सीता जी का हरण किया और बन्धन में पड़ा बेचारा समुद्र।’ साथियों के दुःख सुख का उपभोग सभी को करना होता है। वह सम्बन्धी नहीं जो सुख में सम्मिलित रहता है और दुःख में दूर हो जाता है। किन्तु एक बात है, यदि खोटे पुरुषों का सौभाग्यवश किसी महापुरुष से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध हो जाता है तो उसके इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर जाते हैं।
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