गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 319

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 11

चलसि यद् व्रजाच्चारयन् पशून्
नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम्।
शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः
कलिलतां मनः कान्त गच्छति।।11।।

हे नाथ! आपके चरणारविन्द स्वतः विकसित कमल से भी अधिक सुन्दर एवं सुकोमल हैं। अतः हे कान्त! जब आप गोचारण करते हुए वृन्दावन में निरावरण चरणों से अटन करते हैं तब इस दुस्सह आशंका से कि कहीं वृन्दाटवी के कुश-काल, शिल, तृणांकुरादि आपके निरावरण चरणारविन्दों में गड़ते होंगे, हमारा मन विकल हो जाता है।
गोपांगनाएँ कह रही हैं, हे नाथ! वस्तुतः आपकी संयोग एवं वियोग दोनों ही अवस्थाओं में हम तो संतप्त ही रहती हैं। “अदर्शने दर्शनाकांक्षा, अदृष्टे दर्शनोत्कण्ठा, दृष्टे विश्लेष-भीरुता। अदर्शन में दर्शन की आकांक्षा, विशिष्ट दर्शनोत्कण्ठा के कारण हमको पलभर भी चैन नहीं मिलता और दर्शन-काल में भी विप्रयोग की आशंकावशात् हम सुखी नहीं हो पातीं। पुराणों में भद्रतनु की जो कथा आती है वह इसी तथ्य की द्योतक है। छठे श्लोक का अर्थ करते हुए भद्रतनु की कथा विस्तृत रूप से कही जा चुकी है। आसक्ति ही महत्त्व है; जो कभी विषयों में आसक्त हो चुका है। ऐसा प्राणी भगवदनुकम्पावशात् कदाचित् संत्संग प्राप्त कर भगवच्चरणारविन्द-मकरन्द-पान में भी स्वभावतः आसक्त हो जाता है। ऐसे आसक्त भक्तों को प्रभु-साक्षात्कार भी शीघ्र ही हो जाता है। भक्त सूरदास का जीवन इसका ज्वलन्त उदाहरण है।

“चलसि यद् वजाच्चारयन् पशून, नलिन-सुन्दरं नाथ ते पदम्।”

गोपांगनाएँ कह रही हैं, हे नाथ! आपके चरण अत्यन्त कोमल, कमल से भी अधिक कोमल एवं शोभायुक्त हैं; अतः जिस समय आप गाय बछड़ों को चराते हुए निरावरण चरणों से वृन्दावन एवं गोवर्धन-धाम के वनों में घूमते हैं, उस समय हम अत्यन्त सन्तप्त हो उठती हैं। आपके चरणारविन्दों में दूर्वा, शकु, काश, शर्करादि के अंकुर गड़ते होंगे, यह आशंका ही हमारे विशेष संताप का कारण बन जाती है। वन के शिल-तृणांकुरों के कारण आपको अवश्य ही अवसाद होता होगा क्योंकि आपके चरणाविन्द तो स्वतः विकसित सुकोमल कमल से भी अधिक कोमल हैं एतावता इस विचारमात्र से ही व्रजबालाएँ अत्यन्त उद्विग्न हो उठती हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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