गोपी गीत -करपात्री महाराजभूमिकाश्रीहरिः शरणम् श्रीमद्भागवत कल्पवृक्ष के समान है। इसका भक्ति-प्रेमपूर्वक पाठ करके अपने अभीष्ठ फल को प्राप्त किया जा सकता है। कल्पवृक्ष के पास जाकर फल चाहने वाले को तद्विषयक इच्छा (प्रार्थना) जैसे अनिवार्य होती है, वैसे ही इस भागवत-कल्पवृक्ष के समीप अपने अभीष्टफल की प्राप्ति के लिये अपने चित्त की वृत्ति को प्रेममय बनाकर प्रगाढ अनुरागात्मिका भक्ति को प्रकट करना अनिवार्य है। यह श्रीमद्भागवत, आत्मीय-परमसुहृत्, आप्त के समान वास्तविक हित की मन्त्रणा देने वाला मन्त्री है। भवसागर में डूबते हुए लोगों का उद्धारक (तारक) है। संसाराटवी (महान् वन) में भ्रान्त होकर भटकने वालों के लिये उनके श्रेयोमार्ग का विश्वस्त प्रदर्शक है। श्रीमद्भागवत के अध्ययन से तत्तवज्ञान होता है, किन्तु अनुरागात्मिका श्रीकृष्ण-भक्ति के बिना वह सहजगम्य नहीं है। अतः तत्त्वज्ञान का मुख्य साधन श्रीकृष्ण-भक्ति ही है। श्रीमद्भागवत समस्त सुख-सन्तोष-शान्ति, कल्याण का देनवाला और ‘आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक’-तीनों प्रकार के दुःखों (तापों) को नष्ट करने वाला है। |