गीता रहस्य -तिलक पृ. 509

गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक

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परिशिष्‍ट-प्रकरण
गीता की बहिरंगपरीक्षा

जब इन बातों की ठीक ठीक उपपत्ति मालूम हो गई, कि गीता का प्रतिपाद्य विषय क्‍या है और महाभारत में किस स्‍थान पर गीता बतलाई गई है; तब ऐसे प्रश्‍नों का कुछ भी महत्त्व देख नहीं पड़ता, कि ‘’रणभूमि पर गीता का ज्ञान बतलाने की क्‍या आवश्‍यकता थी? कदाचित किसी ने इस ग्रंन्‍थ को महाभारत में पीछे से घुसेड़ दिया होगा! अथवा, भगवद्गीता में दस ही श्‍लोक मुख्‍य हैं या सौ? ‘’क्‍योंकि अन्‍य प्रकरणों से भी यही देख पड़ता है, कि जब एक बार यह निश्‍चय हो गया कि धर्म निरूपण ‘भारत ‘ का ‘महाभारत’ करने के किये अमुक विषय महाभारत में अमुक कारण से अमुक स्‍थान पर रखा जाना चाहिये, तब महाभारतकार इस बात की परवा नहीं करते कि उस विषय के निरूपण में कितना स्‍थान लग जायगा। गीता की बहिरंगपरीक्षा के संबन्‍ध में जो और दलीलें पेश की जाती हैं उन पर भी प्रसंगानुसार विचार करके उनके सत्‍यांश की जांच करना आवश्‍यक है, इसलिये उनमें से

  1. गीता और महाभारत,
  2. गीता और उपनिषद,
  3. गीता और ब्रह्मसूत्र,
  4. भागवतधर्म का उदय और गीता,
  5. वर्तमान गीता का काल,
  6. गीता और बौद्धग्रन्‍थ,
  7. गीता और ईसाइयों की बाइबल– इन सात विषयों का विवेचन इस प्रकरण के सात भागों में क्रमानुसार किया गया है। स्‍मरण रहे कि उक्‍त बातों का विचार करते समय, केवल काव्‍य की दृष्टि से अर्थात् व्‍यावहारिक और ऐतिहासिक दृष्टि से ही महाभारत, गीता, ब्रह्मसूत्र उपनिषद आदि ग्रंन्‍थों का विवेचन बहिरंगपरीक्षक किया करते हैं, इसलिये अब उक्‍त प्रश्‍नों का विचार हम भी उसी दृष्टि से करेंगे।अ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता रहस्य अथवा कर्म योग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
प्रकरण नाम पृष्ठ संख्या
पहला विषय प्रवेश 1
दूसरा कर्मजिज्ञासा 26
तीसरा कर्मयोगशास्त्र 46
चौथा आधिभौतिक सुखवाद 67
पाँचवाँ सुखदु:खविवेक 86
छठा आधिदैवतपक्ष और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विचार 112
सातवाँ कापिल सांख्यशास्त्र अथवा क्षराक्षर-विचार 136
आठवाँ विश्व की रचना और संहार 155
नवाँ अध्यात्म 178
दसवाँ कर्मविपाक और आत्मस्वातंत्र्य 255
ग्यारहवाँ संन्यास और कर्मयोग 293
बारहवाँ सिद्धावस्था और व्यवहार 358
तेरहवाँ भक्तिमार्ग 397
चौदहवाँ गीताध्यायसंगति 436
पन्द्रहवाँ उपसंहार 468
परिशिष्ट गीता की बहिरंगपरीक्षा 509
- अंतिम पृष्ठ 854

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