गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
परिशिष्ट-प्रकरण
गीता की बहिरंगपरीक्षा
जब इन बातों की ठीक ठीक उपपत्ति मालूम हो गई, कि गीता का प्रतिपाद्य विषय क्या है और महाभारत में किस स्थान पर गीता बतलाई गई है; तब ऐसे प्रश्नों का कुछ भी महत्त्व देख नहीं पड़ता, कि ‘’रणभूमि पर गीता का ज्ञान बतलाने की क्या आवश्यकता थी? कदाचित किसी ने इस ग्रंन्थ को महाभारत में पीछे से घुसेड़ दिया होगा! अथवा, भगवद्गीता में दस ही श्लोक मुख्य हैं या सौ? ‘’क्योंकि अन्य प्रकरणों से भी यही देख पड़ता है, कि जब एक बार यह निश्चय हो गया कि धर्म निरूपण ‘भारत ‘ का ‘महाभारत’ करने के किये अमुक विषय महाभारत में अमुक कारण से अमुक स्थान पर रखा जाना चाहिये, तब महाभारतकार इस बात की परवा नहीं करते कि उस विषय के निरूपण में कितना स्थान लग जायगा। गीता की बहिरंगपरीक्षा के संबन्ध में जो और दलीलें पेश की जाती हैं उन पर भी प्रसंगानुसार विचार करके उनके सत्यांश की जांच करना आवश्यक है, इसलिये उनमें से
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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