गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 64

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
अनासक्तियोग
दूसरा अध्याय
सांख्‍ययोग


मोह के वश होकर मनुष्‍य अधर्म को धर्म मानता है। मोह के कारण अर्जुन ने अपना और पराया भेद किया, इस भेद को मिथ्‍या बतलाते हुए [[श्रीकृष्‍ण] देह और आत्‍मा की भिन्‍नता, देह की अनित्‍यता और पृथकता तथा आत्‍मा की नित्‍यता और उसकी एकता बललाते हैं। मनुष्‍य केवल पुरुषार्थ का अधिकारी है, परिणाम का नहीं। इसलिए उसे कर्तव्‍य का निश्‍चय करके निश्चित भाव से उनमें लगे रहना चाहिए। ऐसी परायणता से वह मोक्ष की प्राप्ति को पहुँच सकता है।

संजय उवाच-
तं तथा कृपयाविष्‍टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्‍तमिदं वाक्‍यमुवाच मधुसूदन:।।1।।

संजय ने कहा-

यों करुणा से दीन बने हुए और अश्रुपूर्ण व्‍याकुल नेत्रों वाले दुखी अर्जुन से मधुसूदन ने ये वचन कहे - 1

श्रीभगवानुवाच
कुतस्‍त्‍वा कश्‍मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्‍टमस्‍वर्ग्‍यमकीर्तिकरमर्जुन।।2।।

श्रीभगवान बोले—

हे अर्जुन! श्रेष्‍ठ पुरुषों के अयोग्‍य, स्‍वर्ग से विमुख रखने- वाला और अपयश देने वाला यह मोह तुझे ऐसी विषम घड़ी में कहां से हो गया? 2

कलैव्‍यं मा स्‍म गम: पार्थ नैतत्‍वम्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्वल्‍यं त्‍यक्‍त्‍वोतिष्‍ठ परंतप।।3।।

हे पार्थ! तू नामर्द मत बन। यह तुझे शोभा नहीं देता। हृदय की पामर निर्बलता का त्‍याग करके, हे परंतप! तू उठ। 3

अर्जुन उवाच
कथं भीष्‍ममहं संख्‍ये द्रोणं च मधुसूदन।
इषुभि: प्रतियोत्‍स्‍यामि पूजार्हावरिसूदन।।4।।

अर्जुन बोले-

हे मधुसूदन! भीष्‍म को और द्रोण को रणभूमि में बाणों से मैं कैसे मारूं? हे अरिसूदन! ये तो पूजनीय हैं। 4

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः