गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
दूसरा अध्याय
सांख्ययोग
संजय उवाच- संजय ने कहा- यों करुणा से दीन बने हुए और अश्रुपूर्ण व्याकुल नेत्रों वाले दुखी अर्जुन से मधुसूदन ने ये वचन कहे - 1 श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान बोले— हे अर्जुन! श्रेष्ठ पुरुषों के अयोग्य, स्वर्ग से विमुख रखने- वाला और अपयश देने वाला यह मोह तुझे ऐसी विषम घड़ी में कहां से हो गया? 2 कलैव्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्वम्युपपद्यते। हे पार्थ! तू नामर्द मत बन। यह तुझे शोभा नहीं देता। हृदय की पामर निर्बलता का त्याग करके, हे परंतप! तू उठ। 3 अर्जुन उवाच अर्जुन बोले- हे मधुसूदन! भीष्म को और द्रोण को रणभूमि में बाणों से मैं कैसे मारूं? हे अरिसूदन! ये तो पूजनीय हैं। 4 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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