गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 36

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-बोध
चौदहवां अध्‍याय

मौनवार
25-1-32

श्री भगवान बोले - जिस उत्तम ज्ञान को पाकर ऋषि- मुनियों ने परम सिद्धि पाई है, वह मैं तुझसे फिर कहता हूँ। उस ज्ञान के पाने और उसके अनुसार धर्म का आचरण करने से लोग जन्‍म-मरण के चक्‍कर से बच जाते हैं। हे अर्जुन, यह समझ कि मैं जीवमात्र का माता-पिता हूँ।

प्रकृति-जन्‍य तीन गुण-तत्‍व, रजस और तमस - देही को बांधने वाले हैं। इन गुणों को उत्तम, मध्‍यम और कनिष्‍ठ भी कह सकते हैं। इसमें सत्‍व गुण निर्मल और निर्दोष है, प्रकाश देने वाला है और इससे उसका संग सुखद होता है। रजस राग से, तृष्‍णा से पैदा होता है और वह मनुष्‍य को गड़बड़ में डालता है। तमस का मूल अज्ञान है, मोह है और इससे मनुष्‍य प्रसादी और आलसी बनता है। अत: संक्षेप में कहा जाय तो सत्त्व में से सुख, रजस में से तृष्‍णादि और तमस में से आलस्‍य पैदा होता है। रजस और तमस को दबाकर सत्त्व जय प्राप्‍त करता है और सत्त्व और रजस को दबा कर तमस जय पाता है। देह के सब कामों में जब ज्ञान का अनुभव देखने में आवे तब यह जानना कि अब तत्‍वगुण प्रधान रूप से काम कर रहा है।


जब लोभ, गड़बड़, अशांति, प्रतिद्वंद्विता दिखाई दे तब रजस की बुद्धि जानो और जब अज्ञान, आलस्‍य, मोह का अनुभव हो तब समझो कि तमस का राज्‍य है। जिसके जीवन में सत्‍व गुण प्रधान होता है, वह मृत्यु के अंत में ज्ञानमय निर्दोष लोक में जन्‍म पाता है, रजस-प्रधान जो होता है वह धांधली[1] लोक में जाता है और तमस-प्रधान मूढ़ योनि में जन्‍मता है। सात्त्विक कर्म का फल निर्मल, राजस का दु:खमय और तामस का अज्ञानमय होता है। सात्त्विक लोक की उच्‍चगति, राजस की मध्‍यम और तामस की अधोगति होती है। मनुष्‍य जब गुणों के सिवा दूसरे को कर्त्ता नहीं समझता और गुणों से परे जो मैं हूं, उसे जानता है तब वह मेरे भाव को पाता है। देह जन्‍म, जरा और मृत्‍यु के दु:खों से छूटकर अमृतमय मोक्ष को प्राप्‍त होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गड़बड़

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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