गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-बोध
चौदहवां अध्याय
मौनवार श्री भगवान बोले - जिस उत्तम ज्ञान को पाकर ऋषि- मुनियों ने परम सिद्धि पाई है, वह मैं तुझसे फिर कहता हूँ। उस ज्ञान के पाने और उसके अनुसार धर्म का आचरण करने से लोग जन्म-मरण के चक्कर से बच जाते हैं। हे अर्जुन, यह समझ कि मैं जीवमात्र का माता-पिता हूँ। प्रकृति-जन्य तीन गुण-तत्व, रजस और तमस - देही को बांधने वाले हैं। इन गुणों को उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ भी कह सकते हैं। इसमें सत्व गुण निर्मल और निर्दोष है, प्रकाश देने वाला है और इससे उसका संग सुखद होता है। रजस राग से, तृष्णा से पैदा होता है और वह मनुष्य को गड़बड़ में डालता है। तमस का मूल अज्ञान है, मोह है और इससे मनुष्य प्रसादी और आलसी बनता है। अत: संक्षेप में कहा जाय तो सत्त्व में से सुख, रजस में से तृष्णादि और तमस में से आलस्य पैदा होता है। रजस और तमस को दबाकर सत्त्व जय प्राप्त करता है और सत्त्व और रजस को दबा कर तमस जय पाता है। देह के सब कामों में जब ज्ञान का अनुभव देखने में आवे तब यह जानना कि अब तत्वगुण प्रधान रूप से काम कर रहा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गड़बड़
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