गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 270

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
14 : गीता जी


मेरे लिए तो गीता जीवित मां है कामधेनु हैं गीता का नित्य वाचन नीरस लगता है क्योंकि उसका मनन नहीं होता। हमें रोज रास्ता दिखाने वाली माता है ऐसा समझकर पढ़ें तो नीरस नहीं लगेगी। हर रोज के पाठ के बाद एक मिनट के लिए उस पर विचार कर लें। रोज ही कुछ-न-कुछ नया मिलेगा। हां संपूर्ण मनुष्य को उसमें से कुछ नहीं मिलेगा। पर जिसमें नित्य कोई दोष हो जाते हों, उसे उबारने वाली यह गीता माता है यह समझकर नित्य-पाठ से थके नहीं।

तुम्हें गीता के सतत अभ्यास से सब चिंताओं से मुक्त रहना सीखना है। हम सबकी फ़िक्र रखने वाला ईश्वर बैठा है। तब यह बोझ व्यर्थ ही हम क्यों ढोते फिरें? हमें तो अपने हिस्से आया हुआ काम करते रहना है।

ज्यों-ज्यों श्रद्धा बढ़ेगी त्यों-त्यों बुद्धि बढ़ेगी। गीता तो यह सिखाती मालूम देती है कि बुद्धियोग ईश्वर कराता है। श्रद्धा बढ़ाना हमारा कर्त्तव्य है। यहाँ श्रद्धा और वृद्धि का वुद्धि का अर्थ समझना रहता है। यह समझ भी व्याख्या करने से नहीं आती; बल्कि सच्ची नम्रता का विकास करने से आती है। जो यह मानता है कि वह सब कुछ जानता है, वह कुछ नहीं जानता। जो मानता है कि वह कुछ नहीं जानता, उसे यथासमय ज्ञान प्राप्त हो जाता है। भरे हुए घड़े में गंगाजल ईश्वर भी नहीं भर सकता। इसलिए हमें तो ईश्वर के सामने रोज ख़ाली हाथ ही खड़े होना है। हमारा अपरिग्रह व्रत भी यही बताता है।

गीता जी जो धर्म सिखाती है, उसे समझो और उसके अनुसार अपना आचरण रखो।

गीता का मध्यबिन्दु क्या है, उसका निश्चय कर लेना। फिर प्रत्येक श्लोक का अर्थ, जो अपने जीवन में उपयोगी है, उसको आचार में रखना। यह सबसे बड़ी टीका है और यही गीता का सच्चा अभ्यास है। गीता का मध्यबिन्दु अनासक्ति ही है, इसमें थोड़ा भी शक नहीं होना चाहिए। दूसरे किसी कारण से गीता नहीं लिखी गई, उसमें कुछ मुझे भी शंका नहीं है और मैं तो यह अनुभव से जानता हूँ कि बगैर अनासक्ति के न मनुष्य सत्य का पालन कर सकता है, न अहिंसा का। अनासक्त होना कठिन है, इसमें सन्देह नहीं; लेकिन उसमें आश्चर्य क्या है? सत्यनारायण का दर्शन करने में परिश्रम तो होना ही चाहिए और बगैर अनासक्ति के यह दर्शन अशक्य है।

'महादेवभाईनी डायरी’,

भाग 2, पृष्ठ 191

31 अक्तूबर,1932

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः