गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 267

गीता माता -महात्मा गांधी

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13 : अहिंसा परमोधर्म:


कैनन शेप्पर्ड और दूसरे सच्चे और सत्साही ईसाई इंग्लैड में युद्धों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं। दिल्ली के ‘स्टेट्समैन‘ ने चार लेख लिखकर इस आंदोलन की बेहद निंदा की है। इस पत्र ने अपने पक्ष-समर्थन में भगवद्गीता को भी घसीटा हैः

‘‘असल में, क्रिश्चियैनिटी की वास्तविक किन्तु कठिन शिक्षा यही मालूम पड़ती है कि समाज को अपने शत्रुओं से लड़ना चाहिए, पर साथ ही, उनसे प्रेम भी करना चाहिए।

‘‘मिस्टर गांधी भी इस बात पर खास तौर से ध्यान दें कि गीता की भी साफ-साफ यही शिक्षा है। कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि विजय उसे ही मिलती है, जो पूर्णतया निर्भय और निर्वैर होकर लड़ता है। सचमुच, इस महाकाव्य के द्वितीय अध्याय ने एक विवेकशील युद्धविरोधी तथा एक सच्चे योद्धा के बीच, सर्वोच्च भूमिका पर सोचने पर भी, सारा विवाद खत्म कर दिया है। स्थानाभाव के कारण, हम उनमें से अधिक उद्धरण तो नहीं दे सकते; पर वह सारा काव्य[1] एक बार नहीं, इन लेखों का लेखक शायद यह नहीं जानता कि आतंकवादियों ने भी इन्ही श्लोकों का हवाला दिया है।

सच्ची बात तो यह है कि निर्विकार चित्त से पढ़ने पर मुझे तो भगवद्गीता में इस लेखक ने जो अर्थ लगाया है, उससे ठीक विपरीत अर्थ मिला है। वह भूल जाता है कि पश्चिम में युद्ध-विरोधी जिस अर्थ में विवेकशील कहे जाते हैं, वैसा अर्जुन नहीं था। अर्जुन तो युद्ध का हिमायती था।

कौरवों की सेना से पहले वह कई बार लोहा ले चुका था। उसके हाथ-पैर तो तब ढीले पड़ गये, जब उसने दोनों सेनाओं को युद्ध के लिए तैयार देखा और उनमें अपने प्यारे-से-प्यारे स्वजनों तथा पूज्य गुरुजनों को पाया। न तो वहाँ मानवता के प्रति प्रेम था और न युद्ध के प्रति घृणा ही थी, जिससे प्रेरित होकर अर्जुन ने कृष्ण से वे प्रश्न पूछे थे और कृष्ण भी ऐसी परिस्थिति में दूसरा कोई उत्तर दे ही नहीं सकते थे।

महाभारत तो रत्नों की एक खान है, जिनमें से गीता केवल एक किन्तु सबसे अधिक देदीप्यमान रत्न है। लिखा है कि उस युद्ध में लाखों योद्धा एकत्र हुए थे और दोनों तरफ से अवर्णनीय अमानुषिकताएं बरती गईं थीं इनमें लाखों की सेना में से केवल सात को जीवित रखकर तथा उन्हें वह निःसार विजय प्रदान करके इस महाकाव्य के अमर कवि ने तो युद्ध की निरर्थकता ही सिद्ध की है; किन्तु युद्ध को केवल एक मूर्खतापूर्ण धोखे की चीज सिद्ध करने के अलावा भी, महाभारत एक उससे भी ऊंचा संदेश हमें देता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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