गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 264

गीता माता -महात्मा गांधी

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11 : गीता और रामायण


बहुतेरे नौजवान कोशिश करते हुए भी पाप से बच नहीं पाते, जिससे वे हिम्मत खो बैठते हैं और फिर दिन-दिन पाप की गहराई में उतरते जाते हैं। बहुतेरे तो बाद में पाप ही को पुण्य भी मानने लगते हैं। ऐसों को मैं बहुत बार सलाह देता हूँ कि वे गीताजी और रामायण का बार-बार अध्ययन और मनन करें; लेकिन वे इस बात में दिलचस्पी नहीं लेते। इसी तरह के नौजवानों की दिलजमई के लिए, उन्हें धीरज बंधाने की गरज से, एक नौजवान के पत्र का कुछ हिस्सा, जो इस विषय से संबंध रखता है, नीचे देता हूं- ‘‘मन साधारणतः स्वस्थ है; किन्तु जब कुछ दिनों तक मन बिल्कुल स्वस्थ रह चुकता है और खुद इस बात का ख्याल हो आता है तो फिर से पछाड़ खानी ही पड़ती है। विकार इतने जबर्दस्त बन जाते हैं कि उनका विरोध करने में बुद्धिमानी नहीं मालूम पड़ती; लेकिन ऐसे समय प्रार्थना, गीता-पाठ और तुलसी-रामायण से बड़ी मदद मिलती है। रामायण को एक बार पढ़ चुका हूं, दुबारा सती की कथा तक आ पहुचा हूँ।

एक समय था, जब रामायण का नाम सुनते ही जी घबराता था, लेकिन आज तो उसके पन्ने-पन्ने में रस पा रहा हूँ। एक ही पृष्ठ को पांच-पांच बार पढ़ता हूं, फिर भी दिल ऊबता नहीं। कागभुशुण्ड जी की जिस कोशिश के कारण मेरे दिल में तुलसी-रामायण के प्रति घृणा पैदा हो गई थी और वह बुरी लगती थी, वही आज सबसे अच्‍छी मालूम होती है उसमें मैं गीता के 11 वें अध्याय से भी ज्यादा काव्य देख रहा हूँ। दो-चार साल पहले आधे दिल से स्वच्छता पाने की कोशिश करने पर भी उसे न पाकर जो निराशा पैदा होती थी, आज उस निराशा का पता भी नहीं है; उल्टे मन में विचार आता है कि जो विकास अनंत काल बाद होने वाला है, उसे आज ही पा लेने का हठ करना मूर्खता है। सारे दिन में कातते समय और रामायण का अभ्यास करते समय आराम मिलता है।"

इस पत्र के लेखक में जितनी निराशा और जितना अविश्वास था, शायद ही किसी दूसरे नौजवान में उतनी निराशा और उतना अविश्वास हो। दोनों ने उसके शरीर में घर कर लिया था; लेकिन आज उसमें जिस श्रद्धा का उदय हुआ है, उससे सब नवयुवकों में आशा का संचार होना चाहिए। जो लोग अपनी इंद्रियों को जीत सके हैं, उनके अनुभव पर भरोसा करके लगन के साथ रामायण आदि का अभ्यास करने वाले का दिल पिघले बिना रह ही नहीं सकता। मामूली विषयों के अभ्यास के लिए भी जब हमें अक्सर बरसों तक मेहनत करनी पड़ती है, कई तरकीबों से काम लेना पड़ता है, तो फिर जिस विषय में सारी जिंदगी की और उसके बाद की शान्ति का भी प्रश्न छिपा हुआ है, उस विषय के अभ्यास के लिए हममें कितनी लगन होनी चाहिए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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