गीता माता -महात्मा गांधी
8 : नित्य व्यवहार में गीता[1]
प्रश्न - हिन्दुस्तान की वर्तमान परिस्थिति में क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि बतौर हिंदू के आपको 'श्रद्धानंद स्मारक कोष' पर और अधिक जोर देना चाहिए? अगर आपको ऐसा मालूम होता हो तो फिर यह कोष इकट्ठा करने में आप क्यों हाथ नहीं बंटाते? उत्तर - मैं तो एक अपूर्ण मनुष्य हूँ। संपूर्ण सर्वशक्तिमान तो एक ईश्वर है। मै अर्थशास्त्र जानता हूँ। मेरे पास जो समय और शक्ति है, वह सब मैंने देश को अर्पण कर दी है। मुझे यह अभिमान नहीं कि सारा काम मैं ही करूं। जिस काम में पंडित मालवीय जी और लाला जी के समान अनुभवी नेता पड़े हुए हों, उसमें मुझे और अधिक क्या करना था? जब कलकत्ते में श्रद्धानंद-स्मारक के लिए 50 हज़ार रुपया इकट्ठा किया गया। उस समय मालवीय जी की आज्ञा से मैं वहाँ उपस्थित था। इसके बाद और कुछ अधिक की आशा मालवीय जी ने मुझसे रक्खी नहीं। मेरे कार्यक्षेत्र की मर्यादा बंधी हुई है। भगवान श्रीकृष्ण के, गीता के उपदेशानुसार चलने का प्रयत्न करने वाला मैं एक अल्प मनुष्य हूँ और मैं यह समझता हूँ कि मेरा अपना धर्म थोड़े-से-थोड़े में भी क्या हैः दूसरा धर्म चाहे जितना अच्छा लगता हो, पर मेरे लिए मेरा मर्यादित धर्म ही भला है, दूसरा भयावह है। प्रश्न - आज आप जो चंदा इकट्ठा कर रहे हैं, क्या वह केवल खादी के लिए ही है? अगर यह ठीक हो तो आप उसका किस प्रकार उपयोग करेंगे? उत्तर - हां, यह धन केवल खादी के लिए ही है; क्योंकि यह 'अखिल भारत देशबंधु-स्मारक कोष' के लिए इकट्ठा किया जा रहा है। इस कोष के साथ देशबंधु का नाम केवल इसीलिए लगाया गया है कि देहांत के थोड़े ही दिनों पहले उन्होंने खादी की योजना तैयार की थी और खादी -कार्य उनको प्रिय था। खादी के लिए चंदा उगाहकर उसकी व्यवस्था करने के लिए ही 'अखिल भारत चर्खा-संघ' की योजना की गई है। इस कोष की पाई-पाई का हिसाब रखा जाता है और देखने का किसी भी मनुष्य को अधिकार है। इस संघ ने अभी देश के सामने 'खादी-सेवक-संघ' की योजना पेश की है। आप कहेंगे कि जान लिया आपका मंडल। दीजिएगा तीस रुपल्ली। उससे भला होगा क्या? हां, हमारा मंडल तो भिखारी-मंडल है, क्योंकि बहुत से गरीब भिखारियों से पैसा लेकर यह स्थापित हुआ है। यह कुछ इंडियन सिविल सर्विस नहीं है कि हमें हज़ारों रुपया वेतनों में देना पड़े। इंडियन सिविल सर्विस तो लोगों के करो पर अवलंबित है। वह तो लोगों पर राज्य करने के लिए है और हमारा मंडल तो लोगों को सेवा के लिए है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नासिक में गांधी जी का भाषण
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