गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 258

गीता माता -महात्मा गांधी

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8 : नित्य व्यवहार में गीता[1]


कुछ युवकों ने यहाँ आते ही मुझे अनेक प्रश्‍न दिये। उनका जवाब ही मेरा आज का भाषण होगा।

प्रश्न -

हिन्दुस्तान की वर्तमान परिस्थिति में क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि बतौर हिंदू के आपको 'श्रद्धानंद स्मारक कोष' पर और अधिक जोर देना चाहिए? अगर आपको ऐसा मालूम होता हो तो फिर यह कोष इकट्ठा करने में आप क्यों हाथ नहीं बंटाते?

उत्तर -

मैं तो एक अपूर्ण मनुष्य हूँ। संपूर्ण सर्वशक्तिमान तो एक ईश्वर है। मै अर्थशास्त्र जानता हूँ। मेरे पास जो समय और शक्ति है, वह सब मैंने देश को अर्पण कर दी है। मुझे यह अभिमान नहीं कि सारा काम मैं ही करूं। जिस काम में पंडित मालवीय जी और लाला जी के समान अनुभवी नेता पड़े हुए हों, उसमें मुझे और अधिक क्या करना था? जब कलकत्ते में श्रद्धानंद-स्मारक के लिए 50 हज़ार रुपया इकट्ठा किया गया। उस समय मालवीय जी की आज्ञा से मैं वहाँ उपस्थित था। इसके बाद और कुछ अधिक की आशा मालवीय जी ने मुझसे रक्खी नहीं। मेरे कार्यक्षेत्र की मर्यादा बंधी हुई है। भगवान श्रीकृष्ण के, गीता के उपदेशानुसार चलने का प्रयत्न करने वाला मैं एक अल्प मनुष्य हूँ और मैं यह समझता हूँ कि मेरा अपना धर्म थोड़े-से-थोड़े में भी क्या हैः

श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परर्धमात्स्वनुष्ठितात्‌ । स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह: ॥

दूसरा धर्म चाहे जितना अच्छा लगता हो, पर मेरे लिए मेरा मर्यादित धर्म ही भला है, दूसरा भयावह है।

प्रश्न -

आज आप जो चंदा इकट्ठा कर रहे हैं, क्या वह केवल खादी के लिए ही है? अगर यह ठीक हो तो आप उसका किस प्रकार उपयोग करेंगे?

उत्तर -

हां, यह धन केवल खादी के लिए ही है; क्योंकि यह 'अखिल भारत देशबंधु-स्मारक कोष' के लिए इकट्ठा किया जा रहा है। इस कोष के साथ देशबंधु का नाम केवल इसीलिए लगाया गया है कि देहांत के थोड़े ही दिनों पहले उन्होंने खादी की योजना तैयार की थी और खादी -कार्य उनको प्रिय था। खादी के लिए चंदा उगाहकर उसकी व्‍यवस्‍था करने के लिए ही 'अखिल भारत चर्खा-संघ' की योजना की गई है। इस कोष की पाई-पाई का हिसाब रखा जाता है और देखने का किसी भी मनुष्य को अधिकार है। इस संघ ने अभी देश के सामने 'खादी-सेवक-संघ' की योजना पेश की है। आप कहेंगे कि जान लिया आपका मंडल। दीजिएगा तीस रुपल्ली। उससे भला होगा क्या? हां, हमारा मंडल तो भिखारी-मंडल है, क्योंकि बहुत से गरीब भिखारियों से पैसा लेकर यह स्‍थापित हुआ है। यह कुछ इंडियन सिविल सर्विस नहीं है कि हमें हज़ारों रुपया वेतनों में देना पड़े। इंडियन सिविल सर्विस तो लोगों के करो पर अवलंबित है। वह तो लोगों पर राज्य करने के लिए है और हमारा मंडल तो लोगों को सेवा के लिए है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नासिक में गांधी जी का भाषण

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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