गीता माता -महात्मा गांधी
5 : गीता पर आस्था
मैं सनातनी होने का दावा करता हूँ; क्योंकि चालीस वर्षो से उस ग्रंथ के उपदेशों को जीवन में अक्षरशः उतारने का मैं प्रयत्न करता आया हूँ। गीता के मुख्य सिद्धान्त के विपरीत जो कुछ भी हो, उसे मैं हिन्दू-धर्म का विरोधी मानकर अस्वीकार करता हूँ। गीता में किसी भी धर्म या धर्म-गुरु के प्रति द्वेष नहीं। मुझे यह कहते बड़ा आनंद होता है कि मैंने गीता के प्रति जितना पूज्य भाव रखा है, उतने ही पूज्य भाव से मैंने बाइविल, कुरान, जंदअवस्ता और संसार के अन्य धर्म-ग्रंथ पढ़े हैं। इस वाचन ने गीता के प्रति मेरी श्रद्धा को दृढ़ बनाया है। उससे मेरी दृष्टि और उससे मेरा हिन्दू धर्म विशाल हुआ है। जैसे कि जरथुस्त्र, ईसा और मुहम्मद के जीवन-चरित्र को मैंने समझा है, वैसे ही गीता के बहुत से वचनों पर मैंने प्रकाश डाला है। इससे इन सनातनी मित्रों ने मुझे जो ताना दिया है, वह मेरे लिए तो आश्वासन का कारण बन गया है। मैं अपने को हिन्दू कहने में गौरव मानता हूँ; क्योंकि मेरे मन में यह शब्द इतना विशाल है कि पृथ्वी के चारों कोनों के पैगंबरों के प्रति यह केवल सहिष्णुता ही नहीं रखता, वरन् उन्हें आत्मसात कर लेता है। इस जीवन-संहिता में कहीं भी अस्पृश्यता को स्थान हो, ऐसा मैं नहीं देखता। इसके विपरीत, लौहा-चुंबक के समान चित्त आकर्षक वाणी में मेरी बुद्वि को स्पर्श करके और इसके भी आगे मेरे हृदय को पूर्णतया स्पर्श करके मेरे मन में यह आस्था उत्पन्न करती है कि भूतमात्र एकरूप है, वे सभी ईश्वर में से निकले हैं और उसी में विलीन हो जानेवाले हैं। भगवद्गीता माता द्वारा उपदिष्ट सनातन धर्म के अनुसार जीवन का साफल्य बाह्य आचार और कर्मकांड में नहीं, वरन् सम्पूर्ण चित्त-शुद्धि में और शरीर, मन और आत्मासहित समग्र व्यक्तित्व को परब्रह्म के साथ एकाकार कर देने में है। गीता के इस संदेश को अपने जीवन में ओत-प्रोत करके मैं करोडों की मानव मेदिनी के पास गया हूँ और उन्होंने मेरी बातें सुनी हैं, सो मेरी राजनीतिज्ञता के कारण अथवा मेरी वाणी की छटा के कारण नहीं, बल्कि मेरा विश्वास है कि मुझे अपने धर्म का मानकर सुनी हैं। समय के साथ-साथ मेरी यह श्रद्धा अधिकाधिक दृढ़ होती गई कि मैं सनातन-धर्मी होने का दावा करूं; यह चीज गलत नहीं और यदि ईश्वर की इच्छा होगी तो वह मुझे इस दावे पर मेरी मृत्यु की मुहर लगा लेने देगा। ‘महादेवभाईनी डायरी,' भाग 2, पृष्ठ 435 4 नवम्बर,1932 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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