गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 243

गीता माता -महात्मा गांधी

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1 : गीता-माता


"गीता शास्त्रों का दोहन है। मैंने कहीं पढ़ा था कि सारे उपनिषदों का निचोड़ उसके 700 श्लोकों में आ जाता हैं। इसलिए मैंने निश्चय किया कि कुछ न हो सके तो भी गीता का ज्ञान प्राप्त कर लूं। आज गीता मेरे लिए केवल बाइबिल नहीं है, केवल कुरान नहीं है, मेरे लिए वह माता हो गई है। मुझे जन्म देने वाली माता तो चली गई, पर संकट के समय गीता-माता के पास जाना मैं सीख गया हूँ। मैंने देखा कि जो कोई इस माता की शरण जाता है, उसे ज्ञानामृत से वह तृप्त करती है।"

कुछ लोग कहते हैं कि गीता तो महा गूढ़ ग्रंथ है। स्व. लोक मान्य तिलक ने अनेक ग्रंथों का मनन करके पंडित की दृष्टि से उसका अभ्यास किया और उसके गूढ़ अर्थों को वे प्रकाश में लाये। उस पर एक महाभाष्य की रचना भी की। तिलक महाराज के लिए यह गूढ़ ग्रंथ था; पर हमारे जैसे साधारण मनुष्य के लिए वह गूढ़ नहीं है।

सारी गीता का वाचन आपको कठिन मालूम हो तो आप पहले केवल तीन अध्याय पढ़ लें। गीता का सब सार इन तीन अध्यायों में आ जाता है। बाकी के अध्याय में वही बात अधिक विस्तार से और अनेक दृष्टियों से सिद्ध की गई हैं। यह भी किसी को कठिन मालूम हो तो इन तीन अध्यायों में से कुछ ऐसे श्लोक छांटे जा सकते हैं[1], जिनमें गीता का निचोड़ आ जाता है।

तीन जगहों पर तो गीता में यह भी आता है कि सब धर्मों को छोड़कर तू केवल मेरी ही शरण ले। इससे अधिक सरल और सादा उपदेश क्या हो सकता है? जो मनुष्य गीता में से अपने लिए आश्वासन प्राप्त करना चाहे तो उसे उसमें से वह पूरा -पूरा मिल जाता है। जो मनुष्य गीता का भक्त होता है, उसके लिए निराशा की कोई जगह नहीं है, वह हमेशा आनंद में रहता है। पर इसके लिए बुद्धिवाद नहीं, बल्कि अव्यभिचारिणी भक्ति चाहिए।

अब तक मैंने एक भी ऐसे आदमी को नहीं जाना, जिसने गीता का अव्यभिचारिणी भक्ति से सेवन किया हो और जिसे गीता से आश्वासन न मिला हो। तुम विद्यार्थी लोग कहीं परीक्षा में फेल हो जाते हो तो निराशा के सागर में डूब जाते हो। गीता निराशा होने वालों को पुरुषार्थ सिखाती है, आलस्य और व्यभिचार का त्याग बताती है। एक वस्तु का ध्यान करना, दूसरी चीजें बोलना और तीसरे को सुनना इसको व्यभिचार कहते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गांधी जी ने स्वयं चुने हुए श्लोकों का एक संग्रह ’गीता प्रवेशिका' के नाम से किया था, जो इस पुस्तक में पृष्ठ 251 पर छपा है।

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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