गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
दसवां अध्याय
विभूति योग
श्रीभगवान बोले- हे महाबाहो! फिर परम वचन सुन। यह मैं तुझ प्रियजन को तेरे हित के लिए कहूंगा।
देव और महर्षि मेरी उत्पत्ति को नहीं जानते, क्योंकि मैं ही देवों का और महर्षियों का सब प्रकार से आदि कारण हूँ। मृत्यु लोक में रहता हुआ जो ज्ञानी लोकों के महेश्वर मुझको अजन्मा और अनादि रूप में जानता है वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। बुद्धि, ज्ञान, अमूढ़ता, क्षमा, सत्य, इंद्रियनिग्रह, शांति, सुख, दु:ख जन्म, मृत्यु, भय और अभय, अहिंसा, समता, संतोष, तप, दान, यश, अपयश- इस प्रकार प्राणियों के भिन्न-भिन्न भाव मुझसे उत्पन्न होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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